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( ४ )
१. श्रेणिक राजा २. महावीर स्वामी का काका- सुपार्श्व ३. कोणिक राजा का पुत्र उदायी राजा ४. पोट्टिल नामक अणगार ५. दृढायु ( अप्रसिद्ध है ) ६. शंखनामक - भगवान् का प्रमुख श्रावक ७. शतक अपर नाम पुष्कली ८. सुलसा श्राविका ६. भगवान् के लिए बीजोरापाक बहपाने वाली रेवती श्राविका
(झ) पंचम आरा और भगवान् का परिनिर्वाण
स्वाम्याख्यान्मम निर्वाणादतीतैर्वत्सरैस्त्रिभिः । सार्धाष्टमाससहितैः पंचमारः प्रवेक्ष्यति ७७ ॥ -- त्रिशलाका० पर्व १० सर्ग १३
भगवान् के परिनिर्वाण के तीनवर्ष सार्धंआठ मास व्यतीत होने के बाद पंचम आरा लगेगा
(ञ) भगवान के परिनिर्वाण के बाद - भगवान के जन्म नक्षत्र पर भष्मराशि महाग्रह का आवागमन
जं स्यणि वणं समणे जाय सव्वदुक्खप्पहीणे तं स्यणि व णं खुद्दार भासरासी महग्गहे दोवास सहसट्टिई समस्स भगवओ महावीरस्म जम्मनक्खत्तं संकते ।
जप्पभि च णं से खुड्डाए भासरासी महग्गहे दोवाससहस्सट्टिई समणस भगवओ महावीरस्स जम्मनक्खत्तं संकते तप्पभि म णं सम्मणाणं निग्गथाणं निग्गंधीय नो उदिए उदिए पूयासकारे पवत्तति
जया णं से खुड्डाए जाव जम्मनक्खत्ताओ वीतिक्कंते भविस्सर तया समणाणं निग्गंथाणं निग्गंथीण य उदिए उदिए पूयासकारं पचत्तिस्सति
- कप्प० सू १२८ से १३० / ५० ४२ : ४३
जिस रात्रि में श्रमण भगवान् महावीर कालधर्म को प्राप्त हुए यावत् सर्व दुःखों का अंत किया - उसी रात्रि में भगवान् महावीर के जन्म नक्षत्र पर क्षुद्र क्रूर स्वभाववाला २००० वर्ष की स्थिति का भस्म राशि नामक महाग्रह का आगमन हुआ। जिस समय से क्षुद्र स्वभाव वाला २००० वर्ष की स्थिति का भष्मराशि नामक महाग्रह महावीर के जन्म नक्षत्र पर आगमन हुआ— उस समय से श्रमण निर्ग्रन्थ तथा निर्ग्रन्थियों का पूजा - सत्कार उत्तरोत्तर वृद्धि को प्राप्त नहीं हुआ ।
जब क्षुद्र स्वभाववाला भस्मराशि ग्रह भगवान् के जन्म नक्षत्र पर दूर हो जायेगा - तब श्रमण निर्ग्रन्थ व निर्ग्रन्थियों का पूजा - सत्कार वृद्धि को प्राप्त होगा ।
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