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विषय स्त्री को धर्म सुनने की अयोग्यता और उसका फल
२७० चतुर्थ निदान
२७१ निग्रन्थी का कुमारों को देखकर निदान कर्म का संकल्प करना २७१ स्त्री को देखकर अन्य लोगों की कामना और स्त्री के कष्टों का विवेचन पुरुष के सुखों के अनुभव करने की इच्छा--- पुरुष बनकर सुख भोगने और धर्म के सुनने की अयोग्यता का वर्णनपंचम निदानमनुष्य के भोगों की अनित्यता का वर्णन
२७३ देवलोकों के काम भोगों का वर्णन देवलोकों के सुखों का वर्णन, फिर च्यवन कर मनुष्य बनने का अधिकार
२७४ .७.२ निह्नववाद
२७४ .१ बहुरतवाद
२७४ .२ जीव प्रादेशिक
२७५ .३ अव्यक्तिक
२७६ .४ समुच्छेदिक
२७७ .५ द्वै क्रिय
२७७ .६ त्रैराशिक भगवान महावीर के निर्वाण के ५४४ वर्ष पश्चात
अंतरंजिका नगरी में त्रैराशिक मत का प्रवर्तन हुआ । इसके प्रवर्तक आचार्य रोहगुप्त थे (षडूलुक)
२७८ .७ अबद्धिक_चार्ट सात निह्नवों का .२ भगवान महावीर और निह्नववाद
२८१ (क) प्रवचन निह्नव .३ कूणिक और चेटक का युद्ध
२८३ (क) हल्ल-विहल्ल कुमार का युद्ध हल्ल-विहल्ल का चारित्र ग्रहण
२८६ (ख) कूणिक की कठोर प्रतिज्ञा
२८७ रथमूसल संग्राम का एक प्रसंग
२८८ कालकुमार चमरेन्द्र ने रथमुसल संग्राम को विकुर्वित किया
२६१ .१ महासिला-कंटक-संग्राम
२६२ चमरेन्द्र ने महाशिला-कंटक-संग्राम को विकुर्वित किया २६५
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