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________________ ( ४०२ ) शीतल जल, बीजकाय, आघाकी आहार और स्त्रियों का सेवन करने वाले ग्रस्थ है-अभ्रमण है। ९-सिया य बीओदगहत्थियाओ पडिसेषमाणा समणा भवंतु। अगारिणो वि समणा भवन्तु, सेति उतेषि तहप्पगारं॥ यदि बीज, उदक और स्त्रियों का सेवन करने वाले श्रमण होते हो तो गृहस्थ भी श्रमण है, क्योंकि वे भी उन वस्तुओं का सेवन करते हैं। १०- जे याषि बीओदगभोह भिक्खू भिक्खं विहं जायह जीषियडी। ते णाह संजोगमविप्पहाय काओषगा अंतकरा भवति । __ जो भिक्षु बीज और सचित्त जल के भोगी है उनकी भिक्षा वृत्ति जीविका के अर्थ-आशय वाली हो जाती है अथवा जो जीवन रक्षा के लिये मिक्षा-वृत्ति धारण करते हैं वे काया के पोषक बन्धु-बान्धवों के संसर्ग को छोड़ कर भी, कर्मों का अंत करने नहीं हो सकते है। ___ ३ गोशालक का प्रश्न११- इमं वयं तु तुम पाउकुन्वं पापाइणो गरासि सव्य एष । पावाइणो पुढो किट्टयंता सयं सयं विट्ठी करति पाउँ । आर्द्रक-तुम ऐसा कहकर, सभी प्रवादियों की निन्दा करते हो। क्योंकि सभी प्रवादी अलग-अलग बताते हुए, अपनी-आनी दृष्टि को प्रकट करते है। आद्रक का उत्तर१२- ते अण्णमण्णस्स उगरहमाणा अक्खंति ऊ समणा माहणाय । सतो य अत्थी असतो य णस्थि गरहामो विहिण गरहामो किंधि॥ वे प्रवादी एक दूसरे की निन्दा करते हुए, अपने पक्ष के स्वीकारमे से ही सिद्धि । (आस्तिकता) और पर पक्ष के स्वीकारने से सिद्धि नहीं (नास्तिकता ही) बताते है, उनकी उस एकाग्रही दृष्टि की ही मैं निन्दा करता हूँ और किसी बात की निंदा नहीं करता हूँ। १३- ण किंचि रुवेणऽभिधारयाओ सविद्विमग्गं तु करेमो पाउँ । मग्गे इसे किटिए आदिएहिं अणुत्तरे सप्पुरिसेहि अंजू ।। और हम किसी के रूप निंदित अंग या वेष की खिल्ली नहीं उड़ाते है, पर उनके दृष्टिमार्ग को ही प्रकट करते है अथवा मैं वह दृष्टिमार्ग प्रकट करता हूँ जो कि सर्वश्रेष्ठ और निर्दोष है और जिसे आर्य सत्युरुषों ने कहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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