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________________ ( ४०१ ) .१- आद्रक का उत्तर पुषि च इहि च अणागयं च एगंतमेष पडिसंधयाइ ॥३॥ समेच लोगं तसथाघराणं खेमंकरे समणे माहणे वा। आरक्खमाणो षि सहस्समज्मे, एर्गतयं सारयई तहच्चे ॥ ४॥ धम्म कहतस्स उपस्थि दोसो खंतस्स दंतस्स जिदिएस्स। भासाय दोसे व विषजगस्स गुणेय भासाय णिसेवगस्सा ॥५॥ महब्बए पंच अणुब्धए य तहेव पंचासव संघरे य। बिरहं दहस्सामणियम्मि पण्णे लवापसकी समणे तिबेमि ॥६॥ -सूय शु राय ६।गा ३ से ६ पहले की, अभी की और आगे की अवस्थाओं में एकांत-साम्य या आत्मभान ही उनमें रहता है। क्योंकि लोक को जान-देखकर, बस और स्थावर जीवों के क्षेमंकर-मंगलकारी श्रमण या ब्राह्मण हजारों के मध्य में धर्मकथा करते हुए भी एकान्तवृत्ति साधे रहते है। या अन्तर्मुखता बनाये रहते है-उनकी चित्तवृत्ति पहले जैसी ही (शुक्ल) रहती है अथवा देह-विभूषा या देहाभिमान से रहित होते है। क्षान्त, दान्त, जितेन्द्रिय, भाषा के दोषों को टालने वाले और भाषा के गुणों को सेवन करने वाले पुरुष को धर्मकथा कहने में दोष नहीं लगता है। ये भमण पाँच महात्रत, पाँच अणुव्रत, पांच आश्रव-कर्म के प्रवेश द्वार, संवर-कर्मशोधन के उपाय, विरति और श्रामण्य-शम-साधना में बुद्धि रखने की (धर्म देशना देते है) और कर्म के लेश को दूर करते हैं-मेरा ऐसा कहना है । '२.२ गौशालक का प्रश्न सीओवगं सेष बीयकाय, आहायकम्मं तह इस्थियाओ। एगंतचारिस्सिह अम्ह धम्मे, तवस्सिणो णाभिसमेह पावं ॥७॥ -सूय° श्रु २। अ६। इस मेरे धर्म में एकान्तचारी तपस्वी को शीतल जल और बीजकाय के सेवन में आषाकी आहार खाने में और स्त्री प्रसंग में पाप होना नहीं माना जाता है । আজ জা - ८-सीओदगं वा तह बीयकायं आहायकम्म तह इत्थियाओ। - एयाई जाणे पडिसेषमाणा अगारिणो अस्समणा भवति ॥ ८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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