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________________ तथेष कृते गोशालक आगत्य भगवन्तमभि समभिदधौ-सुष्टु आयुष्मान् काश्यप, साधु आयुष्मन् काश्यप ! मामेवं वदसि गोशालको मंखलिपुत्रोऽयमित्यादि, योऽसौ गोशालकस्तवान्तेवासी स देषभूयं गत अहं त्वन्य एव तच्छरीरकं परीषहसहनसमर्थमास्थाय वर्ते इत्यादिकं कल्पितं घस्तूग्राहयन् तत्प्रेरणाप्रवृत्तयोद्धयोः साध्वोः सर्वानुभूतिसुनक्षत्रनाम्नोस्तेजसा तेन दग्धयोभंगवताभिहितो-हे गोशालक ! कश्श्चिरो प्रारभ्यमाणस्तदाविधं दुर्गमलभमानोऽङ्गल्या तृणेन शूकेन वाऽऽत्यानमावृण्वन्नावृतः किं भवति १ अनावृत एवालौ, त्वमप्येवमन्यथाजल्पनेनात्मान माच्छादयन् किमारछादितो भवति १ स एष त्वं गोशालको यो मया बहुश्रुतीकृतस्तदेवं मालोचः । एवं भगवतः समभाषतया यथावत ब्रुवाणस्य तपस्तेजोऽसौ कोपानिससर्ज, उचावचाक्रोशैश्चाक्रोशयामास, तत्तेजश्च भगवत्यप्रभवत् तं प्रदक्षिणीकृत्य गोशालकशरीरमेष परितापयदनुप्रविवेश, तेन च दग्धशरीरोऽसौ दर्शितानेकविधषिक्रया सप्तमरात्री कालमकार्षीदिति । महाषीरस्स भगवतो नमन्निखिलनरनाकिनिकायनायकस्यापि जधन्यतोऽपि कोटीसंख्यभक्ति भैरनिर्भरामरषट पदपटलजुष्टपादपद्मस्थापि विविधमृद्धिमतरषिनेयसह परिवृतस्यापि स्वप्रभावप्रशमितयोजनशतमध्यगतवर मारिपिवरदुर्भिक्षाद्युपद्रवस्याप्ययमनुत्तरपुण्यसभ्यमारस्यापि यद्गोशालकेन मनुष्यमात्रेणापिचिरपिरिचितेनापि शिष्यकल्पेनाप्युपसर्गः क्रियते । -ठाण० स्था १० सू० १५६ । टीका राजगृही नगरी के पास 'अषण' नाम का एक गाँव था। वहाँ एक 'मंखली' नाम का चित्रकार था। उसकी पत्री का नाम सुभद्रा था। मंखली जैसे तैसे अपनी आजीविका चलाता था। सुभद्रा गर्भवती थी 'मंखली' अपनी गर्भवती पत्नी को साथ लिए हुए एक गाँव में पहुँचा । वहाँ गोबहुल नाम के एक धनाढ्य के यहाँ गौशाला में ठहरा। उसी गौशाला के एक भाग में 'सुभद्रा के एक पुत्र पैदा हुआ। गोशाला में पैदा होने से इसका नाम 'गोशालक पड़ गया। यह भी बड़ा होकर हाथ में एक चित्रपट लेकर भिक्षा कर के अपनी आजीविका चलाने लगा। उधर भगवान महावीर ने प्रवजित होकर अपना प्रथम चतुर्मास अस्थियाममें विताया दूसरा चतुर्मास 'राजगृह' में एक बुनकर की शाला में बिता रहे थे। संयोगवश घूमताघूमता गोशालक भी वहाँ आ गया। अपना सामान उसी शालाके एक कोने में रख कर वहीं ठहर गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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