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( ३७८ ) १८ गोशालक द्वारा फेंकी गई तेजो लेश्या से भगवान के शरीर में दाह-ज्वर
१ तए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स सरीरगंलि पिपुल्ने रोगार्यके पाउब्भूए, उज्जले जाव दुरहियासे, पित्तजरपरिगयसरीरे, वाहपकतीए याषि विहरइ, अवियाई लोहियषच्चाई पि पकरेइ चाउधण्णं पागरेह-'एवं खल समणे भगवं महावीरे गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स तवेणं तेपणं अण्णाइडे समाणे अंतो छह मासाणं पित्तजरपरिगयसरीरे दाहक्कंतीए छडमत्थे चेष कालं करिस्सह।
-भग• श १५ । प्र १४६ । पृ० ६६२।६३ '२ स्वामी तु रकातीसारपित्तज्वरवशात् कशः।
गोशाललेश्यया जो चकार नतुभेषजम् ॥५४३॥ गोशालतेमसा पीरः षण्मासान्त पिपल्यते ।
इति लोकप्रपादोऽभूताहगामय दर्शनात् ॥५४४॥ उस समय श्रमण भगवान महावीर के शरीर में महापीड़ाकारी अत्यन्त दाह करने वाला यावत् कष्टपूर्वक सहन करने योग्य तथा जिसने पित्तज्वर के द्वारा शरीर को ग्याउ किया है एवं जिससे अत्यन्त दाह होता है-ऐसा रोग उत्पन्न हुआ। उस रोग के कारण रूप-राद (पीब) युक्त दस्त लगने लगे। भगवान के शरीरकी ऐसी दशा जानकर चारों वर्ण केमनुष्य इस प्रकार कहने लगे-"श्रमण भगवान महावीर स्वामी, गोशालक के तप तेज से पराभूत पित्तज्वर और ज्वर से पीड़ित होकर छह मास के अंत में छद्मस्थावस्था में मृत्यु प्राप्त करेंगे। १९ सीह अणगार काशोक और रेवती गाधपत्नी
१ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवाली सीहे णामं अणगारे पगइभहए जाव विणीए मालुयाकच्छगस्स अदूरसामते छहछ?णं अणिक्खित्तेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उडढवाहा जाप विहर। तएणं तस्स सीहस्स अणगारस्स झाणंतरियाए परमाणल्स भयमेयासवे जाप समुप्पजित्था-'एवं खलु ममं धम्मायरियस्स धम्मोषएलगस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स सरीरगसि विउले रोगाय के पाउन्भूए, उज्जले जाप छउमत्थे चेष काल करिस्साइ, पदिस्संति य णं अण्णतिस्थिया 'छउमस्थे चेष कालगए'। इमेणं एयारवेणं महया मणोमाणसिएणं दुक्खेणं अभिभूए समाणे आयाषणभूमिओ पञ्चोकहइ आयाषणभूमियो पञ्चोकहिता जेणेष मालुयाकच्छए तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता मालुयाकच्छगं अंतो अणुपषिसर, मालुयाकच्छगं अंतो अणुपषिसित्ता महया महया सहेणं काल्स परुणे।
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