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अब तो पिता और पुत्र को गले लगकर मिलना ही था । में देखकर दधिवाहन का हृदय भी विरक्त हो उठा। अंग और शासक करकण्डु को बना कर स्वयं दीक्षित हो गया ।
करकण्डु को गोओं से अधिक प्रेम था। उसकी गोशाला भी विशाल थी। राजा स्वयं उसकी देखरेख में सजग रहता था । एक दिन एक श्वेत गोवत्स को देखकर राजा पुलकित हो उठा । राजा को वह बहुत ही प्रिय लगा । राजा की आज्ञा से उसकी अधिक सार-सम्भाल होने लगी। थोड़े ही दिनों में वह एक पुष्ट कंधों द्वारा सबल वृषभ बन गया। सारी गोशाला में वही नजर आता था । राजा करकण्डु भी उसे देखकर बहुत प्रसन्न होता था ।
कालान्तर में वह वृषभ वृद्धावस्था को प्राप्त हुआ । कालान्तर में करकंडु राजा उस गोशाला में आया। उसने वृषभ को देखा जिस पर मक्खियाँ भिनभिना रही है ।
राजा के विचारों में अकल्पित ज्वर आया । वृद्धावस्था के इस दृश्य से दिल को झकझोर डाला । चिन्तन में सराबोर हो उठा । सहसा जातिस्मरण ज्ञान हो गया - मन ही मन संयम स्वीकार कर लिया । देवताओं ने करकण्डु को मुनि वेश प्रदान किया । करकण्डु वन की ओर चल पड़े। प्रत्येक बुद्ध बनकर पृथ्वी पर विचरण करने लगे । अन्त में केवल ज्ञान प्राप्त करके मोक्ष में विराजमान हो गये ।
२.
पद्मावती को साध्वी रूप कलिंग का एक माना
दुर्मुख राजा - प्रत्येक बुद्ध - (द्विमुख) (क) पंचालेषु य तुम्मुहो ।
— उत्त० अ १८|गा ४६ । पूर्वाध (ख) तह पंचाल - जणवए कंपिल्लपुरे नयरे गुण रयण-जलनिही तुम्मुहो राया । तस्य सुकयकम्म जणियं तिवग्ग-सारं जीयलोय-सुहमणुइवं तस्स ! आनंदिय-रायहसो निम्मलगयरंगणो ठेक्कंत-दरिथ
सहालंकिओ निष्कण्ण- सव्वसासो नश्चिर-नड (घ) - नदृ-छप्त सुट्टियसुसोहिल्लो पत्तो सरयागमो । तओ आस- वाहणियाए नीसरतेण दिट्ठो इंदकेऊ महाविभूईए पूइजमाणो, पडिनियत्तेण य दिवसायसाणे दिट्ठो भूमीए पडिओ कट्ठावसेसो बिलुप्पंतो । तं च दहूण चितियमणेण
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पाँचाल देश के 'कंपिलपुर' नगर का स्वामी था 'जय' नाम था 'गुणमाला' । दोनों को ही जैन धर्म में अगाध श्रद्धा थी ।
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- धर्मं ०
० पृ० १२०, १२१
उसकी महारानी का
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