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________________ । ३४७ ) एत्यंतरम्मि पणमिऊण सुहासणस्था पुच्छिया राइणा पउत्ति। तीए षिसाहिया सवित्थयरा। एसो य ते सुओ, जेण तुमं रोहिओ । तओ महाषिभूईए पइसारिओ नयरीए करकडू। तेणषि पणमिमो सबहुमाणं नरिंदो। कयं महाषद्धापणयं । आणंदिओ लोगोत्ति । -धर्म• पृ० ११६ से १२० अंगदेश की राजनगरी चंपापुरी का स्वामी था 'दधिवाहन'। उसकी महारानी का नाम था 'पद्मावती' जो इतिहास-प्रसिद्ध एवं द्वादश व्रती भावक महाराज 'चेटक' की पुत्री थी। ___ "पद्मावती' को धार्मिक संस्कार विरासत में ही मिले थे। पद्मावती गर्भवती हुई। गर्भयोग से इनके मन में दोहद उत्पन्न हुआ कि मैं महाराज की वेशभूषा में हाथी पर सवार होकर बैहूँ और महाराज मेरे सिर पर छत्र लिए मेरे पीछे बैठे; मैं इस प्रकार वन क्रीड़ा करूँ। राजा के द्वारा पूछने पर रानी ने दोहद उत्पन्न होने की सारी बात कह सुनाई। तत्क्षण राजा ने वैसी ही व्यवस्था की। महाराजा के वेश में महारानी हाथी पर सवार हुई। और महाराज पीछे छत्र लिए बैठे। गजराज वन की ओर चला। वह वन के समीप पहुँचा ही था कि इतने में अकस्मात् धुंआधार वर्षा और आँधी का आक्रमण हो उठा। वर्षा के कारण हाथी में मतवालापन चढ़ आया। वह उन्मत्त हुआ दौड़ने लगा। वे दोनों महाविभूषित उद्यान में भ्रमण करने लगे। भयाकुल राजा ने रानी से कहा--अब तो बचाव का एक ही रास्ता है, सामने जो वृक्ष दिखाई दे रहा है, जैसे ही हाथी उसके समीप पहुँचे, हम उस वृक्ष की शाखा को पकड़ कर इस मौत के मुंह से बचें। कालान्तर में दोनो-राजा-रानी बिछुड़ गये। रानी ने पुत्र प्रसव किया। पुत्र का नाम कालान्तर में करकंडुक रखा। पिता-पुत्र में-दोनों ओर से बात तन गयी। युद्ध की तैयारी होने लगी। दोनों ओर की विशाल सेनायें सामने आ लगी। अस्त दधिवाहन राजा की रानी तथा करकंडु की माता पद्मावती दीक्षित हो चुकी थी। जैसे ही साध्वी पद्मावती को यह बात ज्ञात हुई वे गुरुजी की आज्ञा लेकर युद्धभूमि में आई बोर सारे रहस्य का उद्घाटन स्पष्ट रूप में कर दिया कि दधिवाहन और करकण्डु आपस में पिता-पुत्र है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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