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( ३४० ) सबों का आमन्त्रण आने से वह प्रथम भोजन किया हो तो भी दक्षिणा के लोम से प्रतिदिन प्रथम भोजन का वमन कर वापस अनेक बार भोजन करता था। "ब्राह्मणों के लोम को धिक्कार है।" विविध दक्षिणा के द्रव्य से वह ब्राह्मण द्रव्य से वृद्धि को प्राप्त होता गया और वडवाइओं से वड के वृक्ष की तरह पुत्र-पौत्रादिक के परिवार से भी वृद्धि को प्राप्त हुआ।
. -त्रिशलाका• पर्व १०सर्ग । स तु नित्यमजीर्णान्नधमनादूर्ध्वगै रसैः। आमैरभूद् दूषितत्वगश्वत्थ इष लाक्षया ॥ १४ ॥ कुष्ठी क्रमेण संजहो शीर्णघ्राणांघ्रिपाणिकः । तथैषाभुक्त राजाने सोऽतृप्तो हव्यवाडिप ।। १५ ।। एकदा मन्त्रिभिर्भूपो विज्ञप्तो देव ! कुष्ठ्यसौ । संचरिष्णुः कुष्टरोगो नास्य योग्यमिहाशनम् ॥ १६ ॥ सन्त्यस्य नीरुजः पुत्रास्तेभ्यः कोऽप्यत्र भोज्यताम् । न्यंगित प्रतिमायां हि स्थाप्यते प्रतिमान्तरम् ॥ १७ ॥ एषमस्त्विति राज्ञोक्तेऽमात्यैर्षिप्रस्तथोवित्तः । स्वस्थानेऽस्थापयत्पुत्रं गृहे तस्थौ स्वयं पुनः॥ ८ ॥ मधुमंडकवक्षुद्रमक्षिकाजाल
मालितः। पुत्रै हादपि बहिः कुटीरेऽक्षेपि स द्विजः ॥ ६ ॥ बहिःस्थितस्य तस्याज्ञां पुत्रा अपि न चक्रिरे । दारुपात्रे ददुः किन्तु शुनकस्येष भोजनम् ॥ १० ॥ जग्मुश्च तं भोजयितुं सजुगुप्साः स्नुषा अपि । तिष्ठवुश्च चलद्ग्रीवं मोटनोत्पुटनासिकाः ॥ १०१ ॥
-त्रिशलाका पर्व १०॥सर्ग परन्तु नित्य अजीर्ण अन्न के वमन से आम (अपकव) रस ऊँचे जाते हुए उसकी स्वचा दूषित हो गई। इससे वह लारववड पीपल के वृक्ष की तरह व्याधि ग्रस्त हो गया। अनुक्रम से नाक, चरण और हाथ सड़ गया और वह कुष्ट हो गया। तथापि बग्नि की तरह अतृप्त होकर वह राजा के आगे जाकर प्रतिदिन भोजन करता था।
एकदा मन्त्रियों ने राजा से कहा कि-'हे देव ! इस कुष्टी का रोग सम्पर्क से फैलेगा। अतः उससे भोजन कराना योग्य नहीं है । उसके बहुत पुत्र निरोगी है। उनमें से किसी एक को भोजन कराओ। क्योंकि जिस समय कोई प्रतिमा खंडित होती है तब उस
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