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________________ । ११८ इधर शतानिक राजा बिल में स्थित सर्प की तरह सेन्य सहित कौशाम्बी के अंदर समय की बाट देखता हुआ दरवाजा बंध कर रहा। कितनेक काल में चंपापति का स्वयं का सैन्य का बहु भाग जाने से और बहु भाग का मरण प्राप्त होने से वर्षाऋतु में राजहंस की तरह स्वयं के नगर की ओर प्रस्थान किया। उस समय पेला सेडुक ब्राह्मण पुष्पादि लेने के लिए उद्यान में जाता था उस समय उसने सैन्य को प्रस्थान करते देखा। सैन्य क्षीण हो जाने से प्रभात में निस्तेज को प्राप्त नक्षत्र युक्त चन्द्र को निस्तेज हुआ उसे देख कर वह तत्काल शतानिक राजा के पास आया और कहा कि-"दाढभंग हुए सर्प की तरह आपका शत्र क्षीण बल वाला होकर स्वयं के नगर की ओर जा रहा है। इस कारण यदि अभी भी तुम उठो और उनके पीछे जाओ। फलस्वरूप आपको सुख की प्राप्ति होगी। क्योंकि लग्न प्राप्त पुरुष यदि बलवान होता है तो भी उसका पराभव कर सकता है। तद्वचः साधु मन्यानो राजा सर्षाभिसारतः । निःससार शरासारसार नासीरदारुणः ॥ ८१ ॥ ततः पश्चाद्पश्यन्तो नेगुश्चश्म्पेशसैनिकाः । अचिन्तिततडित्पाते को पीक्षितुमपि क्षमः ॥ २ ॥ चंपाधिपतिरेकांगः कांदिशीका पलायितः । तस्य हस्त्यश्वकोशादि कौशाम्बीपतिरप्रहीत् ॥ ३ ॥ दृष्टः प्रविष्टः कौशाम्बी शतानीको महामनाः । उवाच सेडुक विप्रं ब्रूहि तुभ्यं ददामिकिम् ॥ ८४ ॥ -त्रिशलाका पर्व १०।सर्ग उसके वचन को युक्ति-युक्त मानकर शतानिक राजा तत्काल सर्व बलवान और वाण की वृष्टि करने वाले प्रधान सैन्य से दारुण होकर नगर के बाहर निकला। उसे पीछे आते देखकर चम्पापति के सैनिक वापस देखे बिना भागने लगे। अकस्माद पड़ती बिजली के सामने कौन देख सकता है ? चंपापति अकेला ही-किस दिशि में जाना चाहिए" ऐसे भय को प्राप्त हुआ वह भाग गया। फल स्वरूप कौशाम्बी पति ने उसके हाथी, घोड़े और भंडार आदि ले लिया। बाद में मोटा मन वाला शतानिक राजा हर्ष से प्राप्त हुआ कौशांबी में वापस आया और सर्व प्रथम सेडुक विप्र को बुलाकर कहा-तमको क्या है। विप्रस्तमूचे याचिष्ये पृष्ट्वा निजकुटुम्बिनीम् । पर्यालोचपदं नान्यो गृहिणां गृहिणी पिना ॥ ५ ॥ भट्टः प्रहृष्टो भट्टिन्यै तदशेष शर्शस सा। चेतसा चिन्तयामास सा चैवं बुद्धिशालिनी॥ ८६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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