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________________ ( ३११ ) देवज्जोय करेंति, अप्पेगइया देवुक्कलियं करेंति, अप्पेगइया देवा कहकहगं करेंति, अप्पेगतिया देवा दुदुहगं करेंति, अप्पेगतिया चेलुक्खेवं करेंति, अप्पेगइया देवसनिवार्य देवज्जोयं देवकलियं देवकहकहगं देवदुहदुहगं चेलुक्खेव करेंति, अप्पेगतिया उष्पलहत्थगया जाव लयसहस्सपत्तहत्थगया, अप्पेगतिया कलसहस्थगया जाव धूवकडच्छुयहत्थगया हट्ठतु जाव- हियया [पृ० ४७ पं० ३] सव्वतो समता आहावंति परिधावति । तप णं तं सूरियाभं देवं यत्तारि सामाणियसाहसीओ जाव [पृ० ४४ पं० २] सोलस आयरक्खदेव साहस्सीओ अण्णे य बहवे सूरियाभरायहाणिवत्थवा देवा य देवीओ य महया महया इंदाभिसेगेणं अभिसिंयंति अभिसिंचिता पत्तेयं पत्तेयं करयलपरिग्गहियं सिरसावतं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी जय जय नंदा ! जय जय भद्दा ! जय जय नंदा! भद्द ते, अजियं जिणाहि, जियं व पालेहि, जियमज्झे बसाहि दोष देवाणं चंदो इव ताराणं खमरो इव असुराणं धरणो इव नागाणं भरहो इव मणुयाणं बहूइ पलिओ माइ बहूद्द सागरोवमाइ बहूद्द पलिओचमसागरोमाइ उन्हं सामाणियसाहसीणं जाष [पृ० ४४ पं० २] आयरक्खदेव साहस्त्रीणं सूरियाभस्त विमाणस्स अन्नेसिं च बहूणं सूरियाभविमाणवासीणं देवाण य देवीण य आहेवश्च जाव [पृ० २०२ * टिप्पण] महया महया कारेमाणे पालेमाणे विहराहिन्ति कट्ट जय जय भद्द पउंजंति । राय० सू० १३६ जब यह महाविपुल इंद्राभिषेक चलता था तब कितनेक देव सुर्याभविमान में सुगंधित जल का छिटकाव किया । कितनों ने उस विमान की सर्व धूल को साफ किया । दूसरे कितनों ने यह विमान और उसके शेरी बाजार आदि भागोंको लिंपी गॅपी को साफ किया । मांचा ऊपर मांचा ढाल कर विमान को शृङ्गारित किया। योग्य स्थान में हारबंध ध्वजापताकार्ये रोपी, चंदवा बांधे । सुगन्धित छाँटने छाँटे । चन्दन के थापे मारे। द्वार-द्वार में चन्दन के पूर्ण कलश और तोरण टांगे । लम्बी-लम्बी सुगन्धित मालायें लटकायी । सुवासित पुष्प बेरे, सुगन्धमय धूप उवेरे । सोना, रूपा, वज्र, रत्न, मणि, फूल, फल, माला, चूर्ण, गन्ध, आभरण और वस्त्र आदि वर्षांत बरसाये । मंगल बाजे बजाये, ढोल घडुके, वीणा, रणझणी, सफेद मंगल गवाये । विविध प्रकार के अभिनय वाले नृत्य हुए, नाटक, भजवाये, सोना, रूपा, रत्न आदि वेचाया । इस प्रकार वे दे देव स्वयं के स्वामी के अभिषेक की खुशाली में उस विमान को अनेक प्रकार से सुशोभित किया । तथा उस प्रसंग में हर्ष में आकर कोई देव बुचकारा करने लगे। कोई फूले नहीं समाते थे। कितनेक नाचने लगे । तांडव करने लगे । होकार करने लगे । बाहुयें अफलाने लगे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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