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और हाथ जोड़कर स्वयं के अधिपति को जय-विजय से बधावनाकर उनको जनाया कि आप के द्वारा की हुई आज्ञा प्रमाण हम श्रमण भगवान महावीर के पास जाकर बत्तीस प्रकार के दिव्य नाटक दिखाकर आये है ।
इसके बाद यह सुर्याभदेव स्वयं की दिव्य माया को संकेली लेकर एक क्षण में अकेला रहा-वह एकाकी बन गया ।
तत्पश्चात वह सुर्याभदेव भमण भगवान महावीर को तीन प्रदक्षिणा देकर वंदननमस्कार कर स्वयं के पूर्वोक्त परिवार के साथ में यह दिव्य-यान विमान पर चढ़कर जहाँ से आया था वहाँ ही वापस चला गया।
[१३२] तेणं.......... पजत्तीए
पज्जत्तीभावं गयस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए पस्थिए मणोगए संकप्पे समुपजित्था-किं मे पुचि करणिज ? किं मे पच्छा करणिज्ज? कि मे पुवि सेयं ? कि मे पच्छा सेयं १ कि मे पुन्धि पि पच्छा वि हियाए सुहाए खमाए णिस्सेयसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ ।।
[१३३] तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स सामाणियपरिसोववन्नगा देवा सूरियाभस्स देवस्स इमेयारूवमज्झत्थियं जाव [पृ० ५१ पं० १] समुप्पन्न समभिजाणित्ता जेणेव सूरियाभे देवे तेणेव उवागच्छंति, सूरियाभं देवं करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं बद्धाषिन्ति वद्धावित्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पियाणं सूरियाभे विमाणे सिद्धायतणसि जिणपडिमाणं जिणुस्सेहपमाणमित्ताणं अट्ठसयं संनिखित्तं चिट्ठति, सभाए णं सुहम्माए माणवए चेहए खंभे पहरामएसु गोलपट्टसमुग्गएसु बहुओ जिणसकहाओ संनिखि-त्ताओ चिट्ठति, ताओ णं देवाणुप्पियाणं अण्णेसिं च बहूणं वेमाणियाणं देवाण य देवीण य अञ्चणिजाओ जाव पज्जुषासणिजाओ, तं एयं णं देवाणुप्पिमाणं पुब्धि करणिज, तं एयं णं देवाणुष्पियाणं पच्छा करणिज्ज, तं एयं णं देवाणु-प्पियाणं पुब्धि सेयं, तं एयं णं देवाणुप्पियाणं पच्छा सेयं, तं एयं णं देवाणुप्पियाणं पुवि पि पच्छा वि हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आणुगमियत्ताए भविस्सति ।
-राय० पू० १३२-१३३ उस काल उस समय ताजा जन्मा हुआ सुर्याभदेव आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छवास और भाषा-मन की पर्याप्ति के द्वारा शरीर की सर्वांगपूर्णता रखी है। बाद में यह देव इस प्रकार के विचार में पड़ा कि यहाँ भाकर हमारा प्रथम कर्तव्य क्या है।
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