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________________ ( ३.. ) से शोभती हंसती बोलती-चलती विविध विलास से ललित संलाप और योग्य उपचार कुशल, हाथ में बाजांवाली, नाच करने की पूरी तैयारी वाली और बराबर ये देष कुमारों की जोड़ी रूप ऐसी एक सौ आठ देवकुमारियां निकली। इसके बाद सूर्याभदेव १-शंख, २ रणशिंगा, ३-शंखलिओ, ४-खरमुखियो, ५-वेयाओ, ६-पीरपीरिकाओ, ७-पणवोनानी पडधमो, ८-पटहो-मोटी पडघमो, ६-ढक्काओ-डाकलियो, १०-मोटी ढक्काओ-डाको, ११-भेरीओ, १२-झालर, १३-दुर्दुभीओ, १४-सांकडमुखीओ, १५-मोटा सादल, १६-मृदंगों, १७-नंदी मृदंगों, १८-आलिंगो, १६-कुस्तुंबो, २०-गोमुखीओ, २१-नाना मादल, २२-तीन तार की वीणाओ, २३-वीणाओं, २४-भमरीवाली वीणाओं, २५-छह भमरीवाली वीणाओ, २६-सात तार की वीणाओं, २७-बब्बीसो, २८-सुधोषा घंटाओं, २६-नंदी घोषा घंटाओं, ३०-सो तार की मोटी वीणाओ, ३१ कांच की वीणाओं, ३२-चित्रवीणाओं, ३३-आमोदो, ३४-झांझो, ३५-नकुलो, ३६-तृणो, ३७-तुबड़ा वाली वीणाओ, ३८-मुकंदो, ३६-हुडुको, ४०-विचिक्कीओ, ४१ करटीओ, ४२-डिं डिमो, ४३-किणितो, ४४-कडवाओ, ४५-दर्दरो, ४६-दर्दरिकाओ, ४७-कुस्तुंबुरुओ, ४८-कलशीओ, ४६-कलशो, ५० तालो, ५१-कासों के ताले, ५२-रिगिरिसिको, ५३-अंगरिसिको, ५४-शिशुमारिकाओ, ५५-वांस के पाषाओ, ५६-बालीओ, ५७-वेणुओ-वांसलीओ, ५८-परिल्लीओ, और ५६ बद्धको-इस प्रकार ओगणपचास जात के एक सौ आठ-आठ बाजाओं बनाये और एक सौ आठ-आठवे हर बाजाओं के बजाने वाले बनाये। बाद में सुर्याभदेव स्वयं के हाथ में से सर्जित उन देवकुमारों और देवकुमारियों को बुलाया। वे सब आकर-क्या आशा है ! इस प्रकार विनयपूर्वक जनाया। ___सुर्याभदेव ने उनको कहा-हे देवानुप्रियो ! तुम श्रमण भगवान महावीर के पास जाओ और उनको तीन प्रदक्षिणा देकर वंदन-नमस्कार कर-ये गौतम आदि श्रमण निग्रंथों को उस दिव्य देव ऋद्धि, दिव्य देवद्य ति, दिव्य देवानुभाववाला बत्तीस प्रकार का नाटक करके बताओ! [२] तए णं ते बहवे देवकुमारा देवकुमारीयो य सूरियाभेण देवेणं एवं वुत्ता समाणा हट्ट जाव [पृ० ४७ पं०३] करयल० जाव [ पृ० ६७६०८] पडिसुणंति पडिसुणित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता समणं भगवंतं महावीरं जाव [ पृ० १२९ पं०३] नमंसित्ता जेणेष गोयमादिया समणा निग्गंथा तेणेव उवागच्छति । तए णं ते बहवे देषकुमारा देवकुमारीयो य समामेव समोसरणं करेंति करित्ता समामेव अषणमंति अवणमित्ता समामेव उन्नमति एवं सहितामेव ओनमति एवं सहितामेव उन्नमति सहियामेव उण्णमित्ता संगयामेव ओनमति संगयामेव उन्नमंति उन्नमित्ता थिमियामेव ओणमंति थिमियामेव उन्नमंति समामेव पसरन्ति पसरित्ता समामेव आउजविहाणाई गेहति समामेव पवाएंसु पगाईसु पणञ्चिसु। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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