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लिए 'स्थविर' का प्रयोग होता हो । प्रयोग प्रचलित हुआ हो ।
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उत्तरकाल में निग्रन्थ के स्थान पर जिन कल्पी का
अस्तु भगवान् महावीर के काल में श्रमणों के अनेक सम्प्रदाय थे- निर्ग्रन्थ, बौद्ध, आजीवक आदि आदि ।
ओवाइय के अनुसार अम्मड़ परिव्राजक आगामी जन्म में दृढ़ प्रतिज्ञ होगा और रायपसेणइय के अनुसार प्रदेशी राजा आगामी जन्म में दृढ़प्रतिज्ञ होगा । हुआ - यह अभी संशोधन का विषय है ।
यह संक्रमण कैसे
अम्मड परिवाजक - एक बार श्रमण भगवान् महावीर चम्पानगर में समवसृत हुए । परिव्राजक विद्याधर श्रमणोपासक अम्मड ने भगवान् से धर्म सुनकर राजगृह की ओर प्रस्थान किया। उसे जाते देख भगवान् ने कहा - 'श्राविका सुलसा को कुशल समाचार कहना | अम्मड ने सोचा - "पुण्यवती है सुलसा कि जिसको स्वयं भगवान् अपना कुशल समाचार भेज रहे हैं । उसमें ऐसा कौन सा गुण है । मैं उसके सम्यक्त्व की परीक्षा करूँगा ।
अम्मड परिव्राजक के वेश में सुलसा के घर गया और बोला - " आयुष्मति ! मुझे भोजन दो। तुम्हें धर्म होगा । सुलसा ने कहा- मैं जानता हूँ किसे देने से धर्म होता है ।
अम्मड़ आकाश में गया । पद्मासन में स्थित होकर विभिन्न लोगों को बिस्मित करने लगा। लोगों ने उसे भोजन के लिए निमन्त्रण दिया । उसने निमन्त्रण स्वीकार करने से इन्कार कर दिया। पूछने पर उसने कहा- मैं सुलसा के यहाँ भोजन लूँगा । लोग दौड़ेदौड़े गए और सुलसा को बधाइयां देने लगे । उसने कहा- मुझे पाखंडियों से क्या लेना है । लोगों ने अम्मड से यह बात कही । अम्मड ने कहा- यह परम सम्यग्दृष्टि है । इसके मन में व्यामोह नहीं है । वह तब लोगों के साथ ले सुलसा के घर गया । सुलसा ने उसका स्वागत किया । वह उससे प्रतिबुद्ध हुआ । वृत्तिकार ने बताया है कि औपपातिक सूत्र सिद्ध होने की बात कही है। यह कोई अन्य है ।
(४०) अम्मड परिव्राजक के महाविदेह में
वृत्तिकार का अभिमत है कि इनमें से कुछ मध्यम तीर्थंकर के रूप में तथा कई केवली के रूप में होंगे ।
अम्मड मूलरूप में सुलसा के घर आया । अम्मड को अपना एक साधार्मिक मानकर सुलसा ने उसका स्वागत किया । अम्मड ने रहस्यों का उद्घाटन करते हुए कहा - 'ये उपक्रम मैंने तेरी सम्यक्त्व परीक्षा के लिए ही किये थे । तू विचलित नहीं हुई । धर्म में तेरी दृढ़ आस्था देखकर मैं प्रभावित हुआ हूँ । अम्मड ने भगवान के वाक्य भी सुनाये और कहा- 'भगवान् के वाक्य सचमुच ही यथार्थ है ।
निह्नषवाद
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कोहानल - पज्जलिया गुरुणो वयणं असद्दहंता य (३) हिंडं ति भवे माहिल - जमालिणो रोहगुत्तो य ।
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