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एक बार आचार्य आषाढ़ को हृदय सूल उत्पन्न हुआ और वे उसी रोग से मर गये । मरकर ने सौधर्म काल के नलिणीगुल्म विमान में उत्पन्न हुए । उन्होंने अवधि ज्ञान से अपने मृत शरीर को देखा और देखा कि उनके शिष्य आगाढ़ योग में लीन है तथा उन्हें आचार्य आषाढ़ की मृत्यु की जानकारी भी नहीं है । तब देव रूप में आचार्य आषाढ़ नीचे आये और पुनः उन्होंने अपने मृत शरीर में प्रवेश कर दिया । • शिष्यों को जागृत कर कहा - वैरात्रिक करो।' शिष्यों ने वैसा ही किया । जब उनकी योगसाधना का क्रम पूरा हुआ तब आचार्य आषाढ़ देव रूप में प्रकट होकर बोलेश्रमणो ! मुझे क्षमा करें। मैंने असंयती होते हुए भी संयतात्माओं से वंदना करवाई है । अपनी मृत्यु की सारी बात बता वे अपने स्थान पर चले गये ।
तत्पश्चात् उन्होंने अपने
भ्रमणों को संदेह हो गया कि कौन जाने कौन साधु है और कौन देव । निश्चय पूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता। सभी चीजें अव्यक्त है। उनका मन संदेह में डोलने लगा । अन्य स्थविरों ने उन्हें समझाया, पर वे नहीं समझे । उन्हें संघ से अलग कर दिया ।
४. समुच्छेदिक - भगवान महावीर
में समुच्छेदवाद की उत्पत्ति हुई । इसके प्रवर्तक आचार्य अश्वमित्र थे ।
निर्वाण के २२० वर्ष पश्चात् मिथिलापुरी
एक बार मिथिला नगरी में लक्ष्मीगृह चैत्य में आचार्य महागिरि ठहरे हुए थे । उनके शिष्य का नाम कौण्डिन्य और प्रशिष्य का नाम अश्वमित्र था । वह दसवें अनुप्रवाद (विद्यानुप्रवाद) पूर्व के नैपुणिक वस्तु (अध्याय) का अध्ययन कर रहा था । उसमें छिन्नछेदनय के अनुसार एक आलापक यह था कि पहले समय में उत्पन्न सभी नारक विच्छिन्न हो जायेंगे। दूसरे-तीसरे समय में उत्पन्न नैरपिक भी विच्छिन्न हो जायेंगे । इसी प्रकार सभी जीव विच्छिन्न हो जायेंगे । इस पर्यायवाद के प्रकरण को सुनकर अश्वमित्र का मन शंका युक्त हो गया । उसने सोचा यदि वर्तमान संदर्भ में उत्पन्न सभी जीव विच्छिन्न हो जायेंगे तो सुकृत और दुष्कृत कर्मों का वेदन कौन करेगा ? क्योंकि उत्पन्न होने के अंतर ही सबकी मृत्यु हो जाती है ।
गुरू ने कहा— वत्स ! ऋजुसूत्र नय के अभिप्राय से ऐसा कहा गया है, सभी नयों की अपेक्षा से नहीं । निर्ग्रन्थ प्रवचन सर्वनयसापेक्ष होता है । अतः शंका मत कर । वस्तु में अनन्त धर्म होते हैं । एक पर्याय के विनाश से वस्तु का सर्वथा नाश नहीं होता, आदिआदि । आचार्य के बहुत समझाने पर भी वह नहीं समझा । तब आचार्य ने उसे संघ से अलग कर दिया ।
५. द्वौ क्रिय - भगवान् महावीर के २२८ वर्ष पश्चात् उल्लुकातीर नगर में द्विक्रियावाद की उत्पत्ति हुई । इसके प्रवर्तक आचार्य गंग थे ।
१ वीसा दो वाससया तइया सिद्धि गयस्स वीरस्स । सामुच्छेदयविट्ठी मिहिलपुरीए समुपपन्ना
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- आव० भा० गा १३१
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