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बहुत से भक्तों (भोजन) का प्रत्याख्यान कर देता है, रोगादि के उत्पन्न होने अथवा न होने पर बहुत से भक्तों के अनशन त को छेदकर और उसकी मच्छी मालोचना कर पाप से पीछे हट जाता है और समाधि प्राप्त करता है। समाधि प्राप्त कर काल मास में में काल करके किसी एक देवलोक में देवरुप से उत्पन्न हो जाता है।
इस प्रकार हे आयुष्यमन् ! श्रमण ! उस निदान का इस प्रकार पापरूप फल हुआ, जिससे उसका करने वाला सब प्रकार से मुंडित होकर घर से निकल कर अनगार वृत्ति को ग्रहण करने के लिये समर्थ नहीं हो सकता अर्थात् निदान कर्म के प्रभाव से वह साधुवृत्ति नहीं ले सकता।
जाव तेणं तं दारियं जाव भारियत्ताए दलयंति। साणं तस्स भारिया भवति एगा एगजाया जाव तहेव सव्वं भाणियवं। तीसेणं अतिजायमाणीए वा निजायमाणीए वा जाव कि ते आसगस्स सदति ।
-दसासु द १. उस कन्या को उसके माता-पिता और भाई-बन्धु तदुचित दहेज के साथ किसी सम कुल और वित्त वाले कुल युवक को भायाँ रूप से दे देते हैं। वह उसकी एक और पत्नी-रहित पत्नी हो जाती है । वह अपने पति की प्रेयसी और वल्लभा होती है। वह रत्नों की पेटी के समान मनोहर और प्यारी होती है। जिस समय वह घर के भीतर और घर के बाहर जाती है तो उसके साथ अनेक दास और दासियाँ होते है और वे प्रार्थना में रहते हैं कि आपको कौनसा पदार्थ रूचिकर है । स्त्री को धर्म सुनने की अयोग्यता और उसका फल
तीसेणं तहाप्पगाराए इथिकयाए तहारूवे समणे वा माहणे धा धम्म आइक्खेजा १ हंता ! आइक्खेजा। जाव सा णं पडिसुणेजा णोइण? समठे। अभविया णं सा तस्स धम्मस्स सवणताए ।
सा च भवति महिच्छा जाव दाहिणगामिए णेरइए आगमेस्साणं दुल्लभबोहियावि।
तं खलु समणाउसो तस्स णिदाणस्स इमेतारूवे पावए फल-विवागे भवति जं नो संचाएति केवलिपण्णत्तं धम्म पडिसुणित्तए ।
-~-दसासु द० १० उस इस प्रकार की स्त्री को क्या तथारूप श्रमण अथवा श्रावक केवली के प्रतिपादित धर्म को कहे ? हाँ ! कहे किन्तु वह उसको सुने यह बात संभव नहीं। यह उस धर्म को सुनने के अयोग्य है, क्योंकि वह तो उत्कृट इच्छावाली, बड़े-बड़े कार्य आरम्भ करने वाली बड़े परिग्रह वाली, अधार्मिक दक्षिणगामी नारकी और भविष्य में दुर्लभ-बोधि कर्म के उपार्जन करने हो जाती है।
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