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वाले निर्ग्रन्थ और निम्रन्थियों श्री श्रमण भगवान महावीर स्गामी से इस पूर्वोक्त अर्थ को सुनकर और हृदय में धारण कर श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वंदन और नमस्कार करते है। फिर उसी समय उस निदान रूप पापस्थान की आलोचना करते हैं अर्थात् भगवान् के समीप तद्विषयक पाप का प्रकाशन करते है, और प्रतिक्रमण करते हैं, निदान कर्म से विमुख होते हैं अर्थात निदान कर्म को बोसराते हैं, यथायोग्य तप रूप प्रायश्चित को स्वीकार करते हैं।
•३ नवां निदान कर्म
(क) एवं खलु समणाउसो मए धम्मे पण्णत्ते जाव से य परकममाणे दिव्वमाणुस्सएहिं कामभोगेहिं निव्वेयं गच्छेज्जा, मणुसगा खलु कामभोगा अधुवा असासया जाव विप्पजहणिजा दिव्वावि खलु कामभोगा अधुवा जाव पुणरागमणिजा।
संति इमस्स तवनियम जाच वयमपि आगमेहसाणं जाइ इमाइ भवंति अंतकुलाणि चा पंतकुलाणि वा तुच्छकुलाणि वा दरिद्द-कुलाणि वा किवणकुलाणि वा भिक्खाग-कुलाणि वा एसिं णं अण्णतरंसि कुलंसि पुमत्ताए एस मे आया परियाए सुणीहउ भविष्यति । से तं साह ।
-दशासु० द १०
हे आयुष्मन् ! श्रमण ! इस प्रकार मैंने धर्म प्रतिपादन किया है। वह निम्रन्थ धर्म में पराक्रम करता हुआ देव और मनुष्य संबंधी काम-भोगों के विषय में वैराग्य प्राप्त करता है। मनुष्यों के कामभोग अनिश्चित और अनित्य है, अतः किसी न किसी समय अवश्य छोड़ने होंगे। देवों के काम-भोग भी इसी तरह अनिश्चित और बार-बार आने वाले होते है। यदि इस तप-नियम का कुछ फल विशेष है तो आगामी काल में जो ये नीच, अधम, तुच्छ, दरिद्र, कृपण और भिक्षुक कुल है इनमें से किसी एक कुल में पुरुष रूप में यह हमारी आत्मा उत्पन्न हो जाय-जिससे यह दीक्षा के लिए सुख पूर्वक निकल सकेगी। यही ठीक है।
__ (ख) एवं खलु समणाउसो! निग्गंथो वा (निग्गंथी वा) णिदाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणालोइय अप्पडिकते सव्वं तं चेव । से णं मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वइजा ? हंता, पव्वइजा ।
से गं तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झेजा जाव सव्व दुक्खाणं अंतं करेजा णो तिणडे सम।
-दसासु० द १०
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