SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 320
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २१७ ) उस काल उस समय में राजगृह नामक नगर था। उस नगर में गुणशिलक चैत्य था । उप्त नगर का राजा श्रेणिक था । उस नगर में महावीर स्वामी पधारे। परिषद् उनके दर्शनार्थ निकली। उस काल उस समय में बहुपुत्रिका देवी सौधर्म कल्प के बहुपुत्रिक विमान में सुधर्म सभा में बहुपुत्रिक सिंहासन पर चार हजार सामानिक देवियों तथा चार हजार महत्तरिकाओं-सल्य विभव वाली कुमारियोंसे परिवृत्त सुर्याभदेवके समान गीतवादित्रादि नानाविध दिव्य मोगों को भोगती हुई विचर रही है और वह इस संपूर्ण जंबूद्वीप को विशाल अवधि शान से उपयोगपूर्वक देखती हुई राजगृह में समवसृत भगवान महावीर स्वामी को देखती है। और उनको देखकर सुर्याभदेव के समान यावत् नमस्कार करके अपने श्रेष्ठ सिंहासन पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बेठो। सुर्याभदेव के समान आभियोगिक देव को बुलाकर उसने सुस्वरा घंटा बजाने की आशा दी । तदनन्तर सुस्वरा घंटा बजवाकर भगवान महावीर के दर्शन करने को जाने के लिए सभी देवों को सूचित किया। उनका यान विमान हजार योजन विस्तीर्ण था, साढ़े वासठ योजन ऊँचा था। उसमें लगा हुआ महेन्द्ररध्वज पच्चीस योजन ऊँचा था। अंत में वह बहुपत्रिका देवी यावत उत्तर दिशा के मार्ग से सुर्यामदेव के समान हजार योजन का वैक्रियिक शरीर बनाकर उतरी। बाद में भगवान के समीप आयी। और धर्मकथासुनी। उसके वाद वह बहुपुत्रिका देवी अपनी दाहिनी भुजा को फैलाती है। और उससे एक सौ आठ देवकुमारों को निकालती है। फिर बायीं भुजा को फैलाती है और उससे एक सौ आठ देव कुमारियों के निकालती है। उसके बाद बहुत से दारक-दारिका बड़ी उम्रवाले बच्चे बच्चियों को तथा डिम्भिक-डिम्मिका-अल्प उम्रवाले बच्चे-बच्चियों के अपनी वैक्रियिक शक्ति से बनाती है। और सुर्याभदेव के समान नाटय विन्धि दिखाकर चली जाती है। (ट) सौधर्म देवलोक से-पूर्णभद्रदेव का तेण कालेण तेण समएण रायगिहे नाम नयरे। गुणसिलए चेहए। सेणिए राया। सामी समोसरिए । परिसा निग्गया। तेणं कालेणं तेणं समएणं पुणभहे देवे सोहम्मे कम्पे पुण्णभद्दे विमाणे सभाए सुहम्माए। पुण्णभहंसि सीहासणंसि चउहि सामाणिय-साहस्सीहिं, जहा सूरियाभो जाव बत्तीसहविहं नट्टविहिं उपदं सित्ता जामेव दिति पाउन्भूए तामेवदिसि पडिगए। -निर० व ३/अ५ उस काल उस समय में राजगृह नामक नगर था। वहाँ गुणशीलक नामक चैत्य था। उस नगर का राजा भेणिक था। उसकाल में भ्रमण भगवान महावीर उस नगरी में में पधारे । भगवान के दर्शनार्थ परिषद् निकली। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy