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आचार्य ने अन्तिम प्रत्याख्यान कर उसी कैंची से अपना गला काट डाला ।
प्रातःकाल सारे नगर में यह बात फेल गयी कि राजा और आचार्य की हत्या उस शिष्य ने की है। यह कपट वेषधारी किसी राजा का पुत्र होना चाहिए । सेनिक उसकी तलाश में गये, परन्तु वह नहीं मिला। राजा और आचार्य का दाह संस्कार हुआ ।
वह उदायी मारक श्रमण उज्जयिनी में गया और राजा से सारा वृत्तांत कहा । राजा ने कहा- अरे दुष्ट | इतने समय तक का श्रामण्य पालन करने पर भी तेरी जघन्यता नहीं गयी । तुने ऐसा अनार्य कार्य किया। तेरे से मेरा क्या हित संध सकता है । चला जा, तू मेरी आंखों के सामने मत रह । राजा ने उसकी अत्यन्त भर्त्सना की और उसे देश से निकाल दिया ।
(५) दृढायु --- इनके विषय में विशेष जानकारी प्राप्त नहीं है । ६, ७ - - शंख और शतक - — ये दोनों भावस्ती नगरी के श्रावक थे । एक बार भगवान महावीर श्रावस्ती नगरी पधारे और कोष्ठक चैत्य में ठहरे । अनेक श्रावक-श्रावि काएँ वन्दन करने आई । भगवान् का प्रवचन सुना और सब अपने-अपने घर की ओर चले गये | रास्ते में शंख ने दूसरे श्रावकों से कहा – देवानुप्रियो ! घर जाकर आहारा दि विपुल सामग्री तैयार करो । हम उसका उपयोग करते हुए, पाक्षिक पर्व की आराधना करते हुए विहरण करेंगे। उन्होंने उसे स्वीकार किया । बाद में शंख ने सोचा - " अशन आदि का उपयोग करते हुए पाक्षिक औषध की आराधना करना मेरे लिए श्रेयस्कर नहीं मेरे लिए श्रेयस्कर यही होगा कि मैं प्रतिपूर्ण पोषध करूँ ।
है ।
वह अपने घर गया और अपनी पत्नी उत्पला को सारी बात बताकर पौषघशाला में प्रतिपूर्ण पौषध कर बैठ गया ।
इधर दूसरे श्रावक घर गये और भोजन आदि तैयार कराकर एक स्थान में एकत्रित हुए। वे शंख की प्रतीक्षा में बैठे थे। शंख नहीं आया तब शतक को ' उसे बुलाने भेजा । [ नोट- वृत्तिकार ने शतक की पहचान पुष्कली से की है - ( स्थानांग वृत्ति, पत्र ४३२ : पुष्कली नामा श्रमणोपासकः शतक इत्यपरनाम ) भगवती (१२/१) में पुष्कली का शतक नाम प्राप्त नहीं है । वृत्तिकार के सामने इसका क्या आधार रहा- यह कहा नहीं जा सकता ]
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पुष्कली शंख के घर आया और बोला- भोजन तैयार है। चलो, हम सब साथ बैठकर उसका उपयोग करे और पश्चात् पाक्षिक पौषध करें शंख ने कहा- -मैं अभी प्रतिपूर्ण पौषष कर चुका हूँ अतः मैं नहीं चल सकता पुष्कली ने लौटकर सारी बात कही । श्रावकों ने पुष्कली के साथ भोजन किया ।
प्रातःकाल हुआ। शंख भगवान् के चरणों में उपस्थित हुआ । भगवान् को वन्दना कर वह एक स्थान पर बैठ गया। दूसरे भावक भी आये । सबने धर्म प्रवचन सुना ।
भगवान् को वन्दना कर उन
१ - पुष्कली नामा श्रमणोपासकः शतक इत्यपरनाम ।
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- स्थानांगटीका
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