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( १९२ ) भ्रुत्वा व समषसतं श्रीषीरं श्रेणिको नृपः। मृद्ध या महत्या ससुतो पन्दितुं समुपाययौ ॥३६॥
पीयूषवृष्टिदेशीयां विदधे धर्मदेशनाम् ॥३७५॥ ~ श्रुत्वा तां देशनांभर्तुः सम्यक्त्वं श्रेणिकोऽश्रयत् ॥३७६॥
-त्रिशलाका• पर्व १./सर्ग
भगवान महावीर अन्य प्राणियों को प्रतिबोधित करते हुए सुर-असुर के परिवार के साथ राजगृही नगरी पधारे। वहाँ गुणशील चेत्य में देवों द्वारा कृत चेत्यवृक्ष से सुशोभित समवसरण में भगवान ने प्रवेश किया। श्रेणिक राजा ने वंदन नमस्कार किया। वीर भगवान महावीर अमृत वृष्टि जैसी धर्म-देशना दी। प्रभु की देशना सुनकर श्रेणिक राजा ने सम्यक्त्व धारण किया।
.२ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेहए ॥२॥ . तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे ॥८॥ तएणं समणे भगवं महावीरे बहियाजणवयविहारं विहर ॥१७॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसरिए ॥४४॥
तएणं समणे भगवं महावीरे अण्णदाकदाइ रायगिहाओ नयराओ पडिंमिणिक्खमइ, पडिणिक्खभित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥५२॥
उवा. अ८
उस काल उस समय में राजगृह नगर था। गुणशिल्य चैत्य था । उस काल उस समय में भ्रमण भगवान महावीर पधारे।
उसके बाद श्रमण भगवान बाहर जनपद विहार करने लगे।। उस काल उस समय भ्रमण भगवान महावीर राजगृह नगर पधारे ।
उसके बाद श्रमण भगवान महावीर अन्यदा राजगृह नगर से निकल कर बाहर जनपद विहार किया ।
'३ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे । गुणसिलए चेहए । सेणिए राया। सामी समोसढे।
. -अणुत्त० व ३/१२/सू ७२ उस काल उस समय राजगृह नगर में श्रेणिक राजा राज्य करता था। नगर के बाहर गुणशैलक नामक चैत्य में भमण भगवान महावीर स्वामी विराजमान हो गये।
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