________________
( १६७ ) तयोर्विमानतेजोभिर्नभस्युद्योतिते सति । लोकस्तथैव तत्राऽस्थात् कौतुकन्यग्रमानसः ॥३३९॥
–त्रिशलाका० पर्व १०/सर्ग ८ सूर्य की तरह भव्यजनों को प्रतिबोध करते हुए श्री वीर भगवान पुनः कौशाम्बी नगरी पधारे। दिवस के अंतिम प्रहर में चंद्र-सूर्य स्वाभाविक ( शाश्वत ) विमान में बैठकर वीर को वंदनार्थ आये। उनका विमान के तेज में आकाश से उद्योत हुआ देखकर लोग कौतक से वहाँ वैठे रहे।
(ख) 'सर्वज्ञावस्था में' ( पन्द्रहवाँ वर्ष )
तेणं कालेणं तेणं समएणं कोसंबी नाम नगरी होत्था-वण्णओ। चंदोतरणे चेइए वण्णओ।xxx। तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे, जाव परिसा पज्जुवासइ ॥
-भग० श १२/उ/सू ३०-३१/पृ. ५४५ उस काल-उस समय में कौशाम्बी नामक सुप्रसिद्ध नगरी थी। चंद्रावतरण नामक उद्यान था । उस काल-उसी समय श्रमण भगवान महावीर पधारे।।
(ग) तेणं कालेणं तेणं समएणं कोसंबी नाम नगरी होत्था ।xxx। बाहिं चंदोतरणे अजाणे । सेयभहे जक्खे ॥२॥
तत्थणं कोसंबीए नयरीए सयाणिए नामं राया होत्था-महयाहिमवंतमहंत-मलय-मंदर-महिंदसारे । मियावई देवी ॥४॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे ॥२॥
-विवा० श्रु २/५ उस काल-उस समय में कौशाम्बी नामक नगरी थी। उसके बाहर चंद्रावतरण नाम का उद्यान था। उसमें श्वेतभद्र नामक यक्ष का स्थान था। उस समय कौशाम्बी नगरी में शतानीक नामक एक हिमालय आदि पर्वत के समान महान प्रतापी राजा राज्य करता था। उस राजा की रानी का नाम मृगावती देवी था।
उस काल शतनीक राजा के राजत्वकाल में ही भमण भगवान महावीर कौशाम्बी नगरी अवस्थित चन्द्रावतरण उद्यान में पदार्पण किये।
(घ) मृगावती की दीक्षा के समय भगवान् का कौशाम्बी में पदार्पण(कौशाम्बी)
यद्यति भगवान् धीरः प्रव्रजामि तदा ह्यहम् ॥१८॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org