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बाद में उन तापसों ने बहुत आग्रह किया - फलस्वरूप गौतम स्वामी ने वहीं पर उन सबको दीक्षा दी। देवताओं ने उन सबको यतिलिंग दिया ।
बाद में विंध्यगिरि में यूथपति के साथ जैसे दूसरे हाथी चलते हैं वैसे वे सब गौतम स्वामी के साथ-साथ भगवान की ओर जाने लगे ।
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चलते-चलते मार्ग में एक ग्राम आया गौतम गणधर ने तापस मुनि को पूछा कि वस्तु लानी चाहिए ।
भिक्षा का समय हो गया । फलस्वरूप आपके लिए पारणा करने के लिए क्या इष्ट
उन्होंने कहा कि पायसन्न लाओ । फलस्वरूप गौतम स्वामी लब्धि की संपत्ति से स्वयं का पोषण हो उतनी क्षीर एक पात्र में लाये । बाद में इन्द्रभूति गौतम बोले - हे महर्षियों ! आप सब बैठ जाओ और इस पायसान्न से सब पारणा करो ।
फलस्वरूप इतने पायसन्न से क्या होगा । ऐसा विचार सर्व तापसों के मन में आया । तथापि अपने गुरु की आज्ञा अपने को माननी चाहिए। ऐसा विचार कर सब एक साथ बैठ गये ।
बाद में इन्द्रभूति ने अक्षीण महान लब्धि से सबको भोजन करा दिया। गौतम स्वामी ने उन सबको विस्मय कर दिया। बाद में स्वयं आहार करने के लिए बैठे ।
गौतम स्वामी के द्वारा दीक्षित तापसों को कैवल्यज्ञान गौतम का स्नेह केवलज्ञान में बाधक
दिष्ट्या धर्मगुरुवरः प्राप्तोऽस्माभिर्जगद्गुरुः । पितृकल्पो मुनिश्ीय बोधिश्वात्यन्तदुर्लभा || २५१|| सर्वथा कृतपुण्याः स्म इति भावयतामभूत् । भुञ्जानानां केवलं द्राक् तत्र सेवालभक्षिणाम् || २५२ || प्रभुं प्रदक्षिणीकृत्य तेऽयुः केवलिपदि । वन्दध्वं स्वामिनमिति तानभाषिष्ट गौतमः ॥२५३॥ केवल्याशातनां मा स्म कार्षीरित्यवदत्प्रभुः । मिथ्यादुष्कृतपूर्व तान् क्षमयामास गौतमः ॥ २५४ ॥ भूयोऽपि गौतमो दध्यौ सेत्स्याम्यत्र भवे न हि । गुरुकर्माऽहमे तु धन्यामहीक्षिताअपि ॥ २५५ ||
उत्पदे केवलज्ञानं
येषामेषां महात्मनाम् । एवं विचिन्तयन्तं तं भगवानित्यभाषत ॥ २५६॥ किं सुराणां वचस्तथ्यं जिनानामथ गौतम ! | जिनानामिति तेनोक्ते मा कार्षीरिधृति ततः ॥ २५७ ||
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