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केवल ज्ञान उत्पन्न होने के बाद भगवान् महावीर को केवलज्ञान प्राप्ति के पीड़ित किया -- यह एक आश्चर्य है ।
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तीर्थंकरों के कोई उपसर्ग नहीं होते किन्तु बाद गोशालक ने अपनी तेजोलब्धि से बहुत
२- गर्भापहरण—-भगवान् महावीर देवानंदा ब्राह्मणी के गर्भ में आषाढ शुक्ला ६ को आये, तब उसने चौदह स्वप्न देखे थे । बयासी दिन के बाद सौधर्म देवलोक के इन्द्रने अपने पैदल सेना के अधिपति 'हरिनैगमेषी' को बुलाकर कहा - 'तीर्थंकर सदा उग्र, भोग, क्षत्रिय, इक्ष्वाकु, ज्ञात, कौख्य और हरिवंश आदि विशाल कुलों में उत्पन्न होते हैं । भगवान् महावीर अपने पूर्व कर्मों के कारण ब्राह्मण कुल में आये हैं । तुम जाओ और उस गर्भ को सिद्धार्थ क्षत्रिय की पत्नी त्रिशला के गर्भ में रख दो। वह देव तत्काल वहाँ गया । उस दिन अश्विन कृष्णा त्रयोदशी थी । रात्रि का प्रथम प्रहर बीत चुका था। दूसरे प्रहर के अंत में उसने हस्तोत्तरा नक्षत्र में गर्भ का संहरण कर त्रिशला के गर्भ में रख दिया ।
४- अभावित परिषद् - बारह वर्ष और साढे छह मास तक छद्मस्थ रहने के पश्चात् भगवान् को बैशाख शुक्ला दशमी से जृम्भिका ग्राम के बहिर्भाग में केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई। उस समय महोत्सब के लिए उपस्थित चतुविध देवनिकाय ने समयसरण की रचना की । भगवान् ने देशना दी। किसी के मन में विरति के भाव उत्पन्न नहीं हुए । तीर्थंकरों की देशना कभी खाली नहीं जाती । किन्तु यह अभूतपूर्व घटना थी ।
उनकी दूसरी देशना मध्यमपापा में हुई और वहाँ गौतम आदि गणधर दीक्षित हुए ।
आना - एक बार भगवान् महावीर अंतिम प्रहर में चंद्र और सूर्य अपने महावीर को वंदना करने आये । अन्यथा वे उत्तर वैक्रिय द्वारा निर्मित
६ - चंद्र और सूर्य का विमान सहित पृथ्वी पर कौशाम्बी नगरी में विराज रहे थे । उस समय दिन के art मूल शाश्वत विमानों सहित समवसरण में भगवान् शाश्वत विमानों सहित आना -- एक आश्चर्य है । विमानों में आते हैं ।
८- चारका उत्पात - प्राचीन समय में विभेल सलिवेश में पुरण नाम का एक धनाढ्य गृहपति रहता था । एक बार उसने सोचा- पूर्व भव में किये हुए तप के प्रभाव से मुझे यह सारा ऐश्वर्य प्राप्त हुआ है, सम्मान मिला है। अतः भविष्य में और विशेष फल की प्राप्ति के लिए मुझे गृहबास छोड़कर विशेष तप करना चाहिए । उसने अपने सम्बंधियों. और अपने ज्येष्ठ पुत्र को उत्तराधिकार देकर 'प्रणाम' नामक तापसत्रत स्वीकार कर लिया । उस दिन से वह यावज्जीवन तक दो दो दिन की तपस्या में संलग्न हो गया ।
से
पूछा
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पार के दिन वह चार पुट वाले लकड़ी के पात्र को लेकर मध्याह्न बेला में भिक्षा के लिए जाता । पात्र के प्रथम पुट में पड़ी भिक्षा वह पथिकों को बांट देता, दूसरे पुट की भिक्षा कौए आदि पक्षियों को खिला देता, तीसरे पुट की भिक्षा मछली आदि जनचरों को खिला देता । और चौथे पुट में प्राप्त भिक्षा को स्वयं खाता ।
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