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________________ ( १२१ ) सारयणवत्थणियमहुरगंभीरकोंचणिग्घोसदुंदुभिस्सरे उरे वित्थडाए कंठे पट्टियाए सिरे समाइण्णाए अगरलाए अमम्मणाए सुचत्तक्खरसण्णिवाइयाए पुण्णरत्ताए सव्वभासाणुगामिणीए सरस्सईए जोयणणीहारिणासरेणं अद्धमागहाए भासाए भासइ-अरिहा धम्म परिकहेइ। तेसिं सव्वेसिं आरियमणारियाणं अगिलाए धम्म आइक्खइ, सावि य णं अद्धमागहा भासा तेसिं सव्वेर्सि आरियमणारियाणं अप्पणो सभासाए परिणामेणं परिणमइ । -ओव० सू० ७१ तब ओधबली ( सदा समान बलवाले ), महाबली, ( प्रशस्त बलवाले), अपरिमित शारीरिक शक्ति (बल = शारीरिक प्राण ), वीर्य ( आत्म जनित बल), तेज, माहत्म्य ( महानुभावता ) और कान्ति से युक्त और शरद ऋतु के नवमेघ की मधुर गंभीर ध्वनि क्रौंच पक्षी के निर्घोष और दुंदुभि-नाद के समान स्वरवाले उन श्रमण भगवान महावीर ने भंभसार पुत्र कूणिक को, सुभद्रा आदि देवियों को, कई सौ कई सौ वृन्द और कई सौ वृन्द परिवार वाली उस अति विशाल परिषद् को, ऋषि ( अतिशय ज्ञानी साधु ) परिषद् को, मुनि ( मौनधारी साधु परिषद् को, यति ( चरण में उद्यत साधु ) परिषद् और देव परिषद् को, हृदय में विस्तृत होती हुई, कंठ में ठहरती हुई, मस्तक में व्याप्त होती हुई, अलग-अलग निज स्थानीय उच्चारणवाले अक्षरों से युक्त, अस्पष्ट उच्चारण से रहित (वा हकलाहट से रहित ), उत्तम स्पष्ट वर्ण-संयोगों से युक्त, स्वरकला से संगीतमय और सभी भाषाओं में परिणत होनेवाली सरस्वती के द्वारा, एक योजन तक पहुँचनेवाले स्वर से, अर्द्धमागधी भाषा में धर्म को पूर्णरूप से कहा । भगवान से धर्म सुनकर-आगार-अनागार धर्म ग्रहण किया तएणं सा महतिमहालिया मणूसपरिसा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोचा णिसम्महतुट्ठ xxx हियया उट्ठाए उट्टे इ, २त्ता समणं भगवं महावीर तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, २त्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता अत्थेगइया मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया, अत्थेगइया पंचागुवइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवण्णा । -ओव० सू ७८ तब वह विशाल मनुष्य-सभा श्रमण भगवान महावीर के समीप धर्म को सुनकरहृदय में धारणकर, हर्षित, संतुष्ट यावत् विकसित हृदय हुई और उठ खड़ी हुई। भ्रमण भगवान महावीर को तीन बार आदक्षिण-प्रदक्षिणा की-वंदना की और नमस्कार किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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