________________
( १०७)
अनिषिद्धमनुज्ञातं जमालिरिति बुद्धितः । विहं प्रभुपार्वाद्विनिर्ययौ ॥४०॥
सपरीवारः
- त्रिशलाका० पर्व १० सर्ग ८
भगवान् महावीर विहार करते हुए क्षत्रियकुंडग्राम पधारे। वहाँ समवसरण में बैठकर देशना दी। उस समय जमाली नाम भगवान् का भानेज और जमाता, भगवान की पुत्री - प्रियदर्शना सहित भगवान् को वंदनार्थ आये । भगवंत की देशना सुनकर प्रतिबोध को प्राप्त हुआ जमाली माता-पिता की आज्ञा लेकर पाँच सौ क्षत्रियों के साथ भगवान् के पास दीक्षा ग्रहण की। जमाली की स्त्री और भगवान् की पुत्री प्रियदर्शना भी एक हजार स्त्रियों के साथ भगवान के पास दीक्षा ग्रहण की ।
तत्पश्चात् जमाली मुनि भी क्षत्रिय मुनियों सहित प्रभु के साथ विहार करने लगे । उसे सहस्र
भगवान
अनुक्रमतः जमालि एकादश अंग का अध्ययन किया । क्षत्रिय मुनियों का आचार्य किया । जमाली ने छह और अष्टम आदि तप करना प्रारम्भ किया । उसी प्रकार चंदना का अनुसरण करती हुई प्रियदर्शना भी तप करने लगी ।
उस समय जमाली स्वयं के परिवार सहित भगवान् को वंदन किया और बोलाभगवान् ! यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं नियत विहार करना चाहता हूँ । भगवान् ने ज्ञान चक्षु से उसमें भावी अनर्थ जाना । इस कारण जमाली मुनि ने बार-बार पूछा तथापि कुछ भी उत्तर नहीं दिया ।
Jain Education International
"जिस में निषेध नहीं होता उसमें आज्ञा समझनी चाहिए" ऐसा विचार कर जमाली मुनि परिवार सहित अन्यत्र विहार करने के लिए भगवान् के पास से निकले ।
(ठ) भगवान महावीर और कोणिक राजा की भगवद् भक्ति
ते णं कालेणं ते णं समए चम्पा नाम नयरी होत्था । x x x 1 तीसे गं चंपाe rate बहिया उत्तर-पुरत्थि मे दिसि भाए पुण्णभद्दे णामं चेइए होत्या | xxx | बहुजणो अच्चेइ आगम्म पुण्णभङ्गं चेइयं पुण्णभङ्कं चेइयं | XXX से णं पुण्णभद्दे चेहए एक्केणं महया वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खते । x x x 1 तस्स णं वणसंडस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महं एक्के असोगवरपायवे पण्णत्ते । Xxx तस्स णं असोगवर पायवस्स हेट्ठा ईसिं खंधसमल्लीणे एत्थ णं महं एक्के पुढविसिलापट्टए पण्णत्ते । x x x तत्थ णं पाए जयरीए कूणिए णामं राया परिवस । XXX तस्स णं कोणिय स रण्णो धारिणी नामं देवी होत्था | x × × | तस्स णं कोणिअस्स रण्णो एक्के पुरिसे विलय - वित्तिए भगवओ पवित्तिवाउर, भगवओ तद्देवसिअं पवित्ति
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org