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( ६ ) (ख) स्वयं की तेजोलब्धि से गोशालक भस्मसात्
दसहि ठाणेहि सह तेयसा भासं कुजा x x x। केइ तहारूवं समणं वा माहणं वा xxx। अच्चासातेमाणे तेयं णिसिरेजा, से य तत्थ णो कम्मति, णोपकम्मति, अंधिअंधियं करेति, करेत्ता आयाहिणं-पयाहिणं करेति, करेत्ता उड्ढे वेहासं उत्पतति, उप्पतेत्ता से णं ततो पडिहते पडिणियत्तति, पडिणियत्तित्ता तमेव सरीरगं अणुदहमाणे - अणुदहमाणे सह तेयसा भासं कुज्जा जहा वा गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स तवे तेए ।
-ठाण० स्था १०/सू १५६ टीका--xxxएतानि नव स्थानानि साधुदेवकोपाश्रयाणि, दसमं तु वीतरागाश्रयं, तत्र 'अच्चासाएमाणे' त्ति उपसर्ग कुर्वन् गोशालकवत्तेजो निसृजेत्४ ।
कोई व्यक्ति तथारूप-तेजोलब्धि सम्पन्न श्रमण-माहन की अत्याशातना करता हुआ उस पर तेज फेंकता है वह तेज उसमें घूस नहीं सकता। उसके ऊपर-नीचे, नीचे-ऊपर आता जाता है, दाएँ-बाएँ प्रदक्षिणा करता है। वैसा कर आकाश में चला जाता है । वहाँ से लौटकर उस श्रमण-माहन के प्रबल तेज से प्रतिहत होकर वापस उसीके पास चला जाता है। जो उसे फेंकता है। उसके शरीर में प्रवेश कर उसे उसकी तेजोलब्धि के साथ भष्म कर देता है। जिस प्रकार मंखलीपुत्र गोशालक भगवान महावीर पर तेज का प्रयोग किया था।
वीतरागता के प्रभाव से भगवान भष्मसात नहीं हुए। वह तेज लौटा और उसने गोशालक को ही जला डाला ।
.१३ स्कंदक परिव्राजक
तए णं भगवं गोयमे खंदयं कच्चायणसगोत्तं एवं वयासी-एवं खल्लु खंदया। ममं धम्मायरिए धम्मोवएसए, समणे भगवं महावीरे उप्पन्ननाणदंसणधरे अरहा जिणे केवली तीय-पच्चुप्पन्न-मणागय-वियाणए, सव्वण्णू, सम्वदरिसी-जेणं मम एस अट्ठ तव ताव रहस्सकडे हव्वमक्खाए ।
-भग• श २/३ १/सू ३८ गौतम स्वामी ने स्कन्दक से कहा- हे स्कन्दक धर्माचार्य, धर्मोपदेशक श्रमण भगवान् महावीर स्वामी उत्पन्न ज्ञान-दर्शन के धारक हैं, अरिहंत है, जिन है, केवली, है, भूत, भविष्यत् और वर्तमान काल के ज्ञाता है, सर्वज्ञ और सर्वदर्शी है। उन्होंने तुम्हारे मन में रहीं हुई गुप्त बात मुझसे कही है। इसलिए हे स्कन्दक ! मैं तुम्हारे मन की गुप्त बात जानता हूं।
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