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( ८८ ) ४. देव दर्शन-साम्यभाव से देव दर्शन पूर्व असमुत्पन्न है यदि हो जाय तो देवी की प्रधान देवद्धि, देव-द्युति, और प्रधान देवानुभाव को देखता हुआ समाधि प्राप्त कर सकता है।
५. अवधिज्ञान-अवधिज्ञान पूर्व असमुत्पन्न है यदि उत्पन्न हो जाय तो उससे लोक के स्वरूप को देखता हुआ चित्त-समाधि प्राप्त कर सकता है।
६. अवधि दर्शन-पूर्व अनुत्पन्न अवधि दर्शन के उत्पन्न हो जाने पर अवधि दर्शन द्वारा लोक को देखता है ।
७. मनःपर्यव ज्ञान-पूर्व अनुत्पन्न मनःपर्यव ज्ञान के उत्पन्न हो जाने पर मनुष्य लोक के भीतर अढाई द्वीप-समुद्रों में संशी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवों के मन के भावों को जान लेता है।
८ केवल ज्ञान-पूर्व अनुत्पन्न केवल ज्ञान के उत्पन्न हो जाने पर संपूर्ण लोकालोक को जान लेता है।
६. केवल दर्शन-पूर्व अनुत्पन्न केवल दर्शन के उत्पन्न हो जाने पर उसके द्वारा संपूर्ण लोकालोक को देखता है । .
१०. केवल मरण-पूर्व अनुत्पन्न केवल ज्ञान युक्त मृत्यु हो जाने पर सब दुःखों से छूट जाता है। .२ शरीरनिर्गत तेजो लेश्या की शक्ति
(क) अज्जोति ! समणे भगवं महावीरे समणे निग्गंथे आमतेत्ता एवं वयासी-जावतिए णं अज्जो! गोसालेणं मखलिपुत्तेणं ममं वहाए सरीरगंसि तेये निस? सेण अलाहि पज्जत्ते सोलसण्हं जणवयाण, तंजहा--१ अंगाण २ वंगाण ३ मगहाण ४ मलयाण ५ मालवगाण ६ अच्छाण ७ वच्छाण ८ कोच्छाण ९ पाढाण १० लाढाण ११ वज्जीण १२ मोलीण १३ कासीण १४ कोसलाण १५ आवाहाण १६ सुंभुत्तराण घाताए वहाए उच्छादणयाए भासीकरणयाए।
-भग• श १५/प्र १२१/पृ० ६७५/७६ हे आर्यो ! इस प्रकार संबोधन कर श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने श्रमण निर्ग्रन्थों को बुलाकर कहा-हे आर्यो ! मंखलिपुत्र गोशालक ने मेरा वध करने के लिए अपने शरीर में से जो तेजो लेश्या निकाली थी, वह निम्नलिखित सोलह देशों का घात करने में, वध करने में, उच्छेदन करने में और भस्म करने में समर्थ थी। यथा
१ अंग, २ बंग, ३ मगध, ४ मलय, ५ मालव, ६ अच्छ, ७ वत्स, ८ कौत्स, ६ पाट, १० लाट, ११ वज्र, १२ मौली, १३ कोशी, १४ कौशल, १५ अवाह, १६ संभुत्तर
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