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ऐसे कौन जिससे कि कहा- सिंह उसने रसोई घर
रेवती गाथापत्नी ने सिंह अनगार की बात सुनकर कहा - " हे सिंह ! ज्ञानी और कौन तपस्वी है, जिन्होंने मेरी यह गुप्त बात जानी और तुझे कही, तुम जानते हो । भगवान के कहने से मैं जानता हूँ - ऐसा सिंह अनगार ने अनगार की बात सुनकर रेवती गाथापत्नी अत्यन्त हृष्ट और संतुष्ट हुई । मैं आकर पात्र खोला और सिंह अनगार के निकट आकर वह सारा पाक उनके पात्र में डाल दिया । रेवती गृहपत्नी के द्रव्य की शुद्धि युक्त प्रशस्त भावों से दिये गये दान से सिंह अनगार को प्रतिलाभित करने से रेवती गाथापत्नी ने देव का आयुष्य बांधा । रेवती ने जन्म और जीवन का फल प्राप्त किया है - ऐसा उद्घोषणा हुई ।
.६ भगवान् का आहार
१. बाल्यभाव में आहार
आहार मंगुलिए विहिति देवा मणुण्णंतु । - आव० निगा १८५ / उत्तरार्ध टीका - सर्वतीर्थकरा एव बालभावे वर्त्तमाना न स्तन्योपभोगं कुर्वन्ति, किन्त्वाहाराभिलाषे सति स्वामंगुलिं वदने प्रक्षिपन्ति, तस्यांचांगुल्यामाहारं नानारसमायुक्तं मनोज्ञ ं देवाः स्थापयन्ति तत आह - x x x | अतिक्रांतबालभावास्तु सर्वेऽपि तीर्थकृतोऽग्निपक्वमाहारं गृह णति,
सर्व तीर्थकर बालभाव में वर्त्तमान में स्तन का उपभोग नहीं करते हैं किन्तु आहार की अभिलाषा होने पर स्वयं की अंगुलिको चूसते हैं । उस अंगुलि में देव नानारस से समायुक्त कर देते हैं । बालभाव के व्यतीत होनेपर सर्व तीर्थंकर अग्नि से पकाये हुए आहार का सेवन करते हैं ।
. २ केवली अवस्था में आहार ---
जिस समय स्कंदक परिव्राजक ने भगवान को देखा उस समय का विवेचनभगवान् व्यावृत्तभोजी थे ।
तणं से भगवं गोयमे खंदपणं कच्चायणसगोत्तेणं सद्धिं जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव पहारेत्थ गमणाए । तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं महावीरे वियट्टभोई यावि होत्था । तरणं समणस्स भगवओ महावीरस्स विट्टभोइस सरीरयं ओरालं सिंगारं कल्लाणं सिवंधन्नं मंगल्लं अणलंकियविभूसियं लक्खण- चंजण-गुणोववेयं सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणं चिट्ठर । - भग० श २ / उ९ / सू ४० से ४२
टीका - विट्टभोइ व्यावृत्ते व्यावृत्ते सूर्ये भूङ्गक्ते इत्यवंशीलो व्यावृत्तभोजी - प्रतिदिन भोजी इत्यर्थः ।
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