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________________ ( ४७ ) २९. गोत्र और वंश गोयम गुत्ता हरिवंस संभवा नेमिसुधया दो वि। कासव गोत्ता इक्खागु वंसजा सेस वावीसा॥ -सप्ततिशत स्थान प्रकरण ३७-३८ द्वार गा १०५ भगवान नेमिनाथ स्वामी और मुनिसुव्रत स्वामी-ये दोनों गौतम गोत्र वाले थे और इन्होंने हरिवंश में जन्म लिया था। शेष बाइस तीर्थंकरों का गोत्र काश्यप था और इक्ष्वाकुवंश में उनका जन्म हुआ था। ३०. तीर्थंकरों का विवाहमलि नेमि मुत्तुं तेसि विवाहो य भोगफला --सप्ततिशत स्थान प्रकरण ५३ द्वारा, गा ३४ श्री मल्लिनाथ और अरिष्टनेमि के सियाय शेष तीर्थंकरों का विवाह हुआ क्योंकि उनके भोगफल वाले कर्म शेष थे । ३१. गृहवास के समय ज्ञानमह सुय ओहि तिण्णाणा जाव गिहे पच्छिमभवाओ। -सप्ततिशत० द्वार ४४ पिछले भव से लेकर यावत् गृहवास में रहने तक सभी तीर्थंकरों के मतिज्ञान, भुतज्ञान-अवधिज्ञान-ये तीनों ज्ञान होते हैं । ३२. ज्ञान-दीक्षा के समय जायं च चउत्थं मणणाणं । -सप्ततिशत द्वार ७१ दीक्षा ग्रहण करने के समय सभी तीर्थंकरों को चौथा मनः पर्यव ज्ञान होता है । ३३. तीर्थंकरों के पूर्व भव का श्रुतज्ञानपढ़मो दुवालसंगी सेसा इक्कार संग सुत्तधरा। -सप्ततिशत द्वार १० प्रथम तीर्थकर श्री ऋषभदेव पूर्व भव में द्वादशांग सूत्रधारी और तेईस तीर्थकर ग्यारह अंग सूत्रधारी थे। ३४. तीथंकरों के जन्म एवं मोक्ष के आरे संखिज कालरूवे तइयउरयंते उसह जम्मो । अजियस्स चउत्थारयमज्झे पच्छदे संभवाईण । तस्संते अराईणं जिणाणं जम्मो तहा मुक्खो॥ -सप्ततिशत० द्वार २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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