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सभी तीर्थंकर अशोक वृक्ष के नीचे प्रत्रजित हुए ।
२६. दीक्षा के समय तप
सुमइत्थ णिच्च भत्तेण णिगाओ वासुपूज पासो मल्ली वि य अमेण सेसाउ
उत्थे
छट्ठेणं ॥
सुमतिनाथ स्वामी नित्य भक्त से और वासुपूज्य स्वामी उपवास तप से दीक्षित हुए । श्री पार्श्वनाथ स्वामी और मल्लिनाथ स्वामी तेला तप कर दीक्षाली । शेष बाइस तीर्थ - करों ने बेला तप पूर्वक प्रत्रज्या ग्रहण की ।
-प्रव० सा० ४२ द्वार
२७. दीक्षा-परिवार
एगो भगवं वीरो पासो मल्ली य तिहिं तिहिं सहि । भगवंपि वासुपुजो छहि पुरिसस एहि णिक्खंतो । उग्गाणं भोगाणं रायण्णाणं व खत्तियाणं थ। उहि सहस्सेहिं उसहो सेसा उ सहस्स परिवारा ॥
भगवान महावीर ने अकेले दीक्षा ली। श्री पार्श्वनाथ और मल्लिनाथ ने तीन-तीन सौ पुरुषों के साथ दीक्षा ली । भगवान् वासुपूज्य ने ६०० पुरुषों के साथ गृहत्याग किया । भगवान् ऋषभ देव ने उग्र, योग, राजन्य और क्षत्रिय कुल के चार हजार पुरुषों के साथ दीक्षा ली। शेष उन्नीस तीर्थंकर एक-एक हजार पुरुषों के साथ दीक्षित हुए ।
- प्रव० सा० द्वार ३१
२८. स्वप्न :
श्रयं कुंभं ॥
सुविणाई ॥
गय वसह सीह अभिसेयं दाम ससि दिणयरं पउमसर सागर विमाण भवण रयणऽग्गि णरय उवद्वाणं इह भवणं सग्गच्चुयाण उ वीससह सेस जणणी, नियंसु ते हरि विसह गया |
विमाणं ।
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- सप्ततिशत स्थान प्रकरण १८ / द्वार गा ७०-७१
नरक से आये हुए तीर्थंकरों की माताएँ चौदह स्थानों में भवन देखती है एवं स्वर्ग से आये हुए तीर्थंकरों की माताएँ भवन के बदले विमान देखती है ।
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भगवान महावीर स्वामी की माता ने प्रथम सिंह का, भगवान् ऋषभदेव की माता ने प्रथम वृषभ का एवं शेष बाइस तीर्थंकरों की माताओं ने प्रथम हाथी का स्वप्न देखा था ।
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