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समत्तगणिपिडगधरा
बोसव्वी दुवालसंगिणो सव्वक्खरसण्णिवाइणो सव्वभासाणुगामिणो अजिणा जिणसंकासा जिणा इव अवितहं वागरमाणा संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरति ॥
ओव० सू० २६
उन भगवंतों को अपने सिद्धांतों के प्रवाद भी ज्ञात थे और परवाद ( = दूसरे मतमतान्तर ) भी ज्ञात थे । स्वसिद्धांत को पुनः पुनः परावर्तन से अच्छी तरह जानकर, कमलवन में (रमण करनेवाले ) मस्त हाथी के समान, वे लगातार प्रश्न-उत्तर के करने वाले होकर विचरते थे । वे रत्न के करण्डक के समान और कुत्रिकापण । ( तीनों लोक की प्राप्त होने योग्य वस्तुओं को देवाधिष्ठित दुकान ) के तुल्य थे ।
परवादियों का मर्दन करने वाले थे । बारह अंगों के ज्ञाता थे ।
समस्त गणिपिटक के धारक थे ।
वे अक्षरों के सभी संयोगों को जानते थे । होते हुए भी जिन के समान थे 1
सर्वभाषा को जानने वाले थे। जिन नहीं
वे सर्वज्ञ के समान वास्तविक प्रतिपादन करते हुए, संयम और तपसे आत्मा को भावित करते हुए विचरते थे ।
. ०१-४ औधिक अनगारों का विवेचन
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(क) तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे अणगारा भगवंतो - ईरिआसमिया भासासमिया एसणासमिआ आदाण-भंडमत्त-निक्खेवणासमिआ उच्चार- पासवण - खेल - सिंघाण - जल-पारिट्ठावणियासमिआ मणगुत्ता वयगुत्ता कायगुत्ता गुत्ता गुत्तिदिया गुत्तबंभयारी अममा अकिंचणा ( छिण्णग्गंथा छिण्णसोआ ) निरुवलेवा - कंसपाती व मुकतोया ? संख इव निरंगणा २ जीवो विव अप्पडिहयगई ३ जच्च कणगमिव जायरूवा ४ ( आदरिस - फलगा इव पायड भावा ) कुम्मो इव गुत्तिदिया ५ पुक्खर पत्तं व निरुवलेवा ६ गगणमिव निरालंबणा ७ अणिलो इव निरालया ८ चंदो इव सोमलेस्सा ९ सूरो इव दित्ततेआ १० सागरो इव गंभीरा ११ विहग इव सव्वओ विमुक्का १२ मंद इव अप्पकंपा १३ सारयसलिलं व सुद्ध-हिअया १४ खग्ग विसाणं व एगजाया १५ भारुडपक्खी व अप्पमत्ता १६ कुंजरो इव सोंडीरा १७ बसभो इच जायत्थामा १८ सीहो इव दुद्धरिसा १९ वसुंधरा इव सव्च - फासविसहा २० सुहुअ हुआसणो इव तेअसा जलता २१ ।
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ओव० सू० २७
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