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वधमान जीवन-कोष आयी। उन्होंने विश्वभूति और विशाखभूति को क्रमशः अन्दर और बाहर देखा। दासियों के पास से उक्त बात सुन कर प्रियंगु राणी कोप को प्राप्त होकर गुस्से में आकर घर में जाकर बैठ गयी।
राजा ने राणी की इच्छापूर्ति के लिए यात्रा की भेरी बजाई और कपट से सभा में कहा-अपना पुरुषसिंह सामंत उद्धत हो गया है भतः उसकी विजय के लिए मैं जाऊगा। यह खबर सुनकर सरल स्वभावो विश्वभति वन में से राज्य सभा में आया और भक्ति के वश राजा को जाने का निपेधकर स्वयं लश्कर के साथ प्रस्थान किया। वह पुरुषसिंह सामंत के पास गया। वहाँ उसे आज्ञावंत देखकर स्वयं वापस आया । मार्ग में पुष्पकरडक वन के निकट आया। वहाँ द्वारपाल ने सूचित किया-"अन्दर विशाखनंदी कूमार है-यह सनकर चिंतन करने लगा"मुझे कपटपूर्वक पुष्पकरंडक वन में से निकाला । तत्पश्चात् उसने क्रोधित होकर मुष्टि से एक कोठे के वृक्ष पर प्रहार किया जिससे उसके सफल टूटकर पृथ्वी पर पड़ने से सारी पृथ्वी आच्छादित हो गयी। यह बताकर विश्वभूति द्वारपाल को बोला-यदि बड़े पिता श्री पर हमारी भक्ति न होती तो मैं इस कोठे के फल की तरह तुम्हारे सबों के मस्तिष्क भूमि पर गिरा देता परन्तु उनकी भक्ति के कारण मैं ऐसा नहीं कर सकता । परन्तु इस वंचना युक्त भोग मुझे जरूरत नहीं है। ऐसा बोलता हुआ वह संभूतिमुनि के पास गया और चारित्र ग्रहण किया। वह दीक्षित हो गया है-ऐसा जानकर विश्वनंदी राजा अनुज बन्धु सहित वहां आया। और उसे नमस्कार कर क्षमतक्षामना कर राज्य लेने के लिए प्रार्थना की। परन्तु विश्वभूति को राज्य-लिप्सा से रहित जानकर राजा स्वयं के घर आया और विश्वभूति मुनि गुरु के साथ अन्यत्र बिहार किया
तपस्या से अतिकृश हुआ और गुरु की आज्ञा से एकाको बिहार करता हुआ विश्वभूति मुनि अन्यदा मथुरापुरों आया। उस समय वहाँ राजा की पुत्री के साथ विवाह करने के लिए विशाखनंदी राजपुत्र भी मथुरा में आया हुआ था। विश्वभूति मुनि माखक्षमण का पारण के लिए नगरी में गोचरी के लिए गये। जहाँ विशाखनन्दो की छावणी थी वहाँ नजदीक आये तथा उनके मनुष्यों को कहा-यह विश्वभूति कुमार जाता है। ऐसा कहकर विशाखनदी को बताया। शत्रु को तरह उन्हें देखते ही विशाखनदी कुपित हुआ। उस काल में विश्वभूति मुनि किसी गाय के साथ में अबड़ाने से पृथ्वी पर पड़ गये । यह देखकर-"कोठो के फलों को उपाड़ने के समय जो बल था वह कहाँ गयाऐसा कहकर विशाखनदी हंसा ! विशाखनंदो की यह बात सुनकर विश्वभूति क्रोधित होकर गाय के सींगों को पकड़ कर आकाश में भ्रमित किया। तत्पश्चात् ऐसा निदान किया-इस उग्र तपस्या के प्रभाव से मैं भवांतर में घना पराक्रम वाला होकर इस विशाखनंदी की मृत्यु के लिए होऊ । अस्तु कोटिवर्ष की आयुष्यपूर्ण कर पूर्व । प्रायश्चित किये बिना मृत्यु प्राप्त कर वह विश्वभूति महाशुक्र देवलोक में उत्कृष्ट आयु वाला देव हुआ।" (च) अथास्मिन् मागधे देशे पुरे राजगृहाह्वये। विश्वभूतिर्महीपोऽभूज्जनी नाम्नास्य वल्लभा ॥ ६॥
तयोः स्वर्गात्स आगत्य विश्वनंदी सुतोऽजनि। विख्यातपौरुषो दक्षः पुण्यलक्षणभूषितः ॥ ७ विश्वभूतिमहोभतुः सस्नेहोऽस्यानुजो महान् । विशाखभूतिनामास्य लक्ष्मणाख्या प्रियाभवत् ॥ ८॥
तयोः पुत्रः कुधीर्जातो विशाखनंदसंज्ञकः। ते सर्व पूर्वपुण्येन तिष्ठन्ति शर्मणा मुदा ।।६।। विचिन्येति समाहूय तस्मै दत्वाशु तद्वनम् । त्यक्त्वा राज्यश्रियं सोगात्संभूतगुरुसंनिधिम् ॥३६॥
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