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वर्धमान जीवन - कोश
उन्होंने वैताढ्य गिरि पर निवास करने वाले सुन्दर देहधारी मागघ- प्रभास नामक देव को भी जीत लिया। उन्होंने विद्याधरों के स्वामी नमि और विनमि नामक राजाओं को भय से कंपायमान कराकर उनसे अपनी सेवा करायो ! बालमृगनयनी लक्ष्मो भी उनकी सेवा करती थी । गंगा और सिंधु नदी-देवियाँ, उनका अभिषेक करती थीं तथा नये कमल-दलों के सदृश नेत्रोंवाले उपवन निवासी यक्ष भी नाना प्रकार के पुष्पों से उनकी पूजा करते थे ।
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(छ) ता कंकेली दल कोमल कर । वीणा वंस-हंस - कोइल. सर || तासु देवि उत्तुंग पयोहर णाम अनंतमइ तिमणोहर || सो सुरसुंदरि चालिय चामरु | ताहि गब्भि जायउ सबरामरु || उ णामें मरीइ विक्खायउ || बहु-लक्खण समर्लकिय-काय ॥ देव-देउ अच्चन्त-विवेइउ । णीलंजस मरणे उव्वे || चरण-कमल जुय-णमियाहंडलु । दिक्खंकिउ मेल्लिव महिमंडल || हरि-कुरु-कुल- कच्छाइ गरिंदहिं । समउ णमंसिउ इंद-पदिहि ||
णाली पियामहु जइयहुँ । णत्तउ जइ पावइयउ तइयहुँ ।। दुच्चर - रिसह महातवलग्गड । भग्ग णराहिव एहु विभग्गउ || सरवरसलिलु पिएव्वइ लग्गउ । भुक्खइँ भज्जइ लज्जइ णग्गउ || वक्कलु परिहइ तरु-हल भक्खइ । मिच्छाइट्ठि असच्चु णिरिक्खइ | वता - बहुदुरियमहरुले मिच्छा सल्ले विविह- देह संधारइ | भरसर-नंदणु संसय- हय- मणु चिरु हिंडिवि संसारइ ||५||
- वीरजि० संधि १ / कडबक ५
भरत की रानी अनंतमती अत्यन्त सुंदर थी । उसके हाथ कंकेली पुष्पों के दलों के समान कोमल तथा उसका स्वर वीणा, हंस, बाँसुरी व कोकिल के समान मधुर था । उसी तुरंग पयोधरी देवी के गर्भ में वह शबर का जीव आकर उत्पन्न हुआ, जिसके ऊपर देवलोक को सुन्दरियाँ चमर ढोरतो थीं । उनका वह पुत्र मरीचि नाम से विख्यात हुआ । उसका शरीर अनेक शुभ लक्षणों से अलंकृत था । जब उसके पितामह देवों के देव व अत्यंत ज्ञानवान् नीलांजसा नर्तकी के मरण से विरक्त होकर पृथ्यो-मंडल का राज्य त्यागकर दीक्षित मुनि हो गये और इन्द्र भी उनके चरण कमलों को प्रणाम करने लगे, तब इन्द्र और प्रतोन्द्र एवं हरिवश व कुरुवंश के कच्छादि राजाओं सहित उनके इस पोते मरीचि ने भी अपने पितामहको ध्यान-लीन अवस्था में नमन किया और वह उसी समय प्रव्रजित हो गया । किन्तु शीघ्र हो उन भगवाम् ऋषमदेव के दुश्वर महातप को असह्य पाकर जब अनेक अन्य दीक्षित राजा तप से भ्रष्ट हुए, तब वह भी भ्रष्ट हो गया ! वह वल्कल धारण करने लगा, वृक्षों के फल खाने लगा और मिथ्यादृष्टि होकर असत्य बातों पर दृष्टि देने लगा । इस प्रकार नाना महान् पापों से युक्त मिध्यात्व रूपी शल्य के कारण उसने अनेक जन्मों में अनेक प्रकार के शरीर धारण किये । और वह भरतेश्वर पुत्र होकर भी मन में संशय के आवास से चिरकाल तक ससार में परिभ्रमण करता रहा ।
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