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वर्धमान जीवन-कोश सौधर्म देवलोक से चवकर भगवान महावीर का जीव भगवान ऋषभ के पुत्र भरत के पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ । उसका नाम मरीचिकुमार था। इक्ष्वाकु कुल में जन्म हुआ । अतीत में कुलकर वंश था। (ख) इतश्चात्र व भरते विनीतेत्यस्ति पूर्वरा । पुरा युगादिनाथस्य कृते सुरवरैः कृता ।।२५।।
तत्र श्रीकृषभस्वामिसूनुर्नवनिधीश्वरः। चतुर्दशरत्नपतिर्भरतश्चक्रवर्त्यभूत् ।।२६॥ ग्रामचिन्तकजीवः स च्युत्वाऽभूत्तस्य नन्दनः । मरीचीन विकिरंस्तेन मरीचिरिति विश्रुतः ॥२७॥
त्रिशलाका० पर्व १० । सर्ग १ (ग) अस्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे इक्खागभूमी तस्थणाभी कुलगरो। तस्स य मरुदेवीए भारियाए
समुप्पण्णो उसहसामी तिथयशे। तस्सय उप्पण्णदिव्वणाणस्स पुत्तस्स भरहचक्कवट्टिणो सुओ मिरिई समुप्पण्णवेरग्गो पव्वइओ जहुत्तविहारी विहरइ।
-चउप्पन० पृ०६७ विनीता नगरी में ऋषत्रदेव भगवान् का पुत्र भरत चक्रवर्ती जो नवनिधि और चतुदंश रत्न का स्वामी चक्रवर्ती था । ग्रामचिंतक -नयसार का जीव पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। उसका नाम मरीचि प्रसिद्ध हुआ । (घ) तेत्थु सुदिव भोय भुजेप्पिणु । एक्कु समुद्दोवमु जीवेप्पिणु ।। एत्थु विउलि भारह-वरिसंतरि । कोसल विसइ सुसास-णिरंतरि । णंदण-वण वरही रव रम्महि ।
+ होतउ रिसहणाहु चिरु-णरवइ । पविमल णाण-धारि सुह-संकरू । पढम णरिंदु पढम-तित्थं करु ॥
+ तहु पहिलारहु सुउ भरहे सरु । जो छक्खंड-धरणि-परमेसरु ।।
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-वीरजि० संधि १/कड ४ सौधर्म स्वर्ग में दिव्यभोगों को भोगकर तथा एक सागरोपम काल जीवित रहकर वह शबर स्वर्ग सेच्युत हुआ। उस समय इस विशाल भारतवर्ष में कोशल देश धन धान्य से सम्पन्न था। उसकी राजधानी अयोध्या नगरी के नन्दनवन मयूरों की ध्वनि से रमणीक थी। ऐसो उस अयोध्या नगरी के राजा ऋषभनाथ थे, जिनके चरणों में देवेन्द्र भी नमस्कार करते थे। उन्होंने दीर्घकाल तक राज्य किया। वे विशुद्ध ज्ञान के धारक शुभशकर ( पुण्य और सुखकर्ता ) प्रथम तीर्थ कर और प्रथम नरेंद हुए । उनके प्रथम पुत्र भरतेश्वर थे-जो षट्खण्ड पृथ्वी के सम्राट हुए । (च) मागहु वर-तणु जेण पहासु वि । जित्तउ सुरु वेयडढ-णिवासु वि ।।
विज्जाहर-वइ भय कंपाविय । णमि-विणमीस वि सेव कराविय ।। घत्ता-जो सिसु-हरिणच्छिइ सेविउ लच्छिइ। गंगइ सिंधुइ सिंचिउ । णव-कमल-दलक्खहिँ उववण-जक्खहिं णाणा कुसुमहिं अंचिउ ।।
-वीरजि० संधि १/कडवक ४
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