________________
वर्धमान जीवन-कोश भो भो धम्म-बुद्धि तुह होज्जउ । बोहि - समाहि - सुद्धि संपज्जउ ॥ जीव म हिंसहि अलिउ म बोल्लहि। कर-यलु परहणि कहिं मि म घल्लहि ।। पर-रमणिहि मुह कमलु म जोयहि। थण-मंडलि कर-पत्तु म ढोयहि । को वि म जिंदहि दूसिउ दोसें । संग-पमाण करहि संतोसें ।। पंचुबर - महु - पाण - णिवायणु । रयणि-भोयणु दुक्खहं भायणु ॥ वाह विवजहि मणि पडिवज्जहि । णिच्चमेव जिणु भत्तिइँ पुज्जहि ।।
तं णिसुणेवि मणुय-गुण-णासहँ. । लइय णिवित्ति तेण महु-मासह ।। घत्ता-हुउ जीव-दयावरु सवरु णिरक्खरु । लागउ जिणवर धम्मइ ।। मुउ कालें जंतें गिलिउ कयंतें । उप्पण्णउ सोहम्मइ ॥
-वीरजि० संधि १। कड ३ उस शबरी ने शबर से कहा-मत मारा। हाय रे मूढ़, तू कुछ भी विवेक नहीं करता। यह कोई मृग नहीं है। वे ज्ञानी मुनिराज हैं जो लोकप्रिय हैं, और सभी उन्हें प्रणाम करते हैं। शबरी की यह बात सुनकर उस पुलिन्द ने अपने भूजदंड के भुषण धनुष को भूमि पर पटक दिया । और सद्भाव पूर्वक मुनिवर को प्रणाम किया। पाप का नाश करने वाले उन मुनिराज ने उसे आशीर्वाद देते हुए कहा-हे शवर !, तुझे धर्मबुद्धि तथा शुद्धज्ञान और समाधि प्राप्त हो । अब तू जीवों को हिंसा मत करना, झूठ मत बोलना तथा कभी भी पराये धन को हाथ नहीं लगाना' परायो स्त्रियों के मुख कमल की ओर मत घूरना और उनके स्तन-मंडल पर हाथ नहीं चलाना। दोषों से दूषित होने पर भी किसी की निंदा मत करना, घर में कितना साज-सामान रखना है इसको संतोषपूर्वक सीमा कर लेना । वट पीपल, पाकर, उमर व कठूमर इन पाँच उदुम्बर फलों का, तथा मधु, मद्य और मांस का भोजन एवं रात्रि भोजन, दुःख के कारण बनते हैं। तू आखेट करना छोड़ दे। इसकी अपने मन में दृढ़
करना छोड़ दे। इसकी अपने मन में दृढ़ प्रतिज्ञा करले । प्रतिदिन भक्तिभावपूर्वक जिन भगवान की पूजा करना । मुनि के इस उपदेश को सुनकर उस शबर ने मानवीय गुणों का नाश करने वाले मधु और मांस के त्याग की प्रतिज्ञा ले ली। इस प्रकार वह निरक्षर शबर जीवदया में तत्पर हो
-धर्म में लग गया। कालव्यतीत होने पर वह यम द्वारा निगला ज कर मरा और सोधर्म स्वर्ग में देव उत्पन्न हुआ। (च) अथ-जम्बद्र मोपेतो जम्बूद्वोपो विराजते। मध्ये द्वोपाब्धि सर्वेषां चक्रवर्तीव भूभुजाम् ॥२॥
तन्मध्ये मेहराभाति सुदर्शनो महोन्नतः। मध्ये विश्वाचलानां च देवानामिव तीर्थकृत् ॥३॥ तस्मात्पूर्वदिशो भागे भ्राजते क्षेत्रमुत्तमम्। रम्यं पूर्वविदेहाख्यं धार्मिकैः श्रोजिनादिभिः ।।४।। यतोत्र तपसानन्ता विदेहा मुनयश्चिदा। भवन्त्यतइदं क्षेत्र विधत्ते सार्थनामहि ।।५।।
-वीरवर्षच० अधि २ । असंख्यात द्वोप-समुद्रों वाले इस मध्यलोक के मध्य में राजाओं में वकी के समान जबूवृक्ष से संयुक्त जम्बूद्वीप शोभित है। उस जम्बूद्वीप के मध्य में महान् उना सुदर्शन नाम का मेरुपर्वत देवों के मध्य में तीर्थकर के समान सर्व पर्वतों में शिरोमणि रूप से शोभित है। उस मेपर्वत के पूर्व दिशा में पूर्व विदेह नाम का एक उत्तम क्षेत्र
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org