________________
वर्धमान जीवन-कोश
मेढ़क ग्राम से विहार कर भगवान् कौशाम्बी नगरी पधारे । . कौशाम्बी में शतानिक नामक राजा था । उसके चेटक राजा की पुत्री मृगावती नामक रानी थी। वह सदा तीर्थकर के चरण की पूजा में एकनिष्ठा वाली परम श्राविका थी। .
शतानिक राजा के सुगुप्त नामक एक मंत्री था। उसके नन्दा नाम को स्त्री थी। वह भी परम श्राविका और मृगावतो की सखी थी।
उस नगर में एक धनावह नामक एक सेठ रहता था। वह बहुत धनाढ्य था। उसके गृह कार्य में कुशल मूला नामक पत्नी थी।
अस्तु यहाँ वीरप्रभु का पदार्पण हुआ। उस समय पौष मास की प्रतिपदा थी। उस समय उस दिन भगवान ने इस प्रकार बहुत ही अशक्य अभिग्रह ग्रहण किया।
द्रव्य की अपेक्षा--सूपों को एक कोने में स्थित कुल्माष मुझे भिक्षा में दें। क्षेत्र की अपेक्षा-अमुक-अमुक क्षेत्र में भिक्षा दें। काल की अपेक्षा-नियत काल में भिक्षा दें ।
भाव की अपेक्षा-जो राजकन्या हो, दासत्व को प्राप्त हो, मुंडित सिर हो, तीन दिन का उपवास हो विस्तार से इनके निम्नलिखित १३ बोलोंपर अभिग्रह था। (१) राज कन्या हो। (२) अविवाहिता हो -- सती हो । (३) सदाचारिणी हो। (४) निरपराध होने पर भी जिसके प.वों में बेड़ियों तया हाथों में हथकड़िया हों। बांधकर घुबारे में रखी गयी हो। (५) सिर मुंडित हो। (६ शरीर पर काछ लगी हुई हो। (७) तीन दिन का उपवास किये हए हो -भुखी हो। (८) पारण के लिए उड़द के बाकले सूप में लिए हो। (8) न घर में हो न बाहर हो । (१०) एक पैर देहली के भातर तथा दूसरा बाहर हो । (११) दान देने की भावना से अतिथि की प्रोक्षा कर रहो हो, सर्वभिक्षुओं का पदार्पण हा हो । (१२) प्रसन्न मुख हो । (१३) और आँखों में आंसु भो हो-हदनी करतो हुई हो ।
___ उपर्युक्त अभिग्रह पूर्वक उक्त स्त्री मुझे एक कोने में रखे हुए कुल्माष ( उड़द ) बहराव तो मुझे लेना है-- नहीं तो चिरकाल तक ( छः मास तक ) मुझे पारणा नहीं करना है।
इन तेरह अभिग्रह पूर्वक मुझे वह कन्या भिक्षा दे तो में उस भिक्षाको ग्रहण करूगा अन्यथा चिरकार तक भिक्षा ग्रहण नहीं +. अर्था । पारणा नहीं करूगा ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org