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वर्धमान जीवन कोश तीसे णं सेसदवियाए उदगसालाए उत्तरपुरत्थिमे दिसिभाए, एत्थणं हथिजामेणामं वणसंडे होत्था । x x x ||६|| तस्सि च ण गिहपदेसंसि भगवं गोयमे विहरइ, भगवं च णं अहे आरामंसि ।।७।।
-सूय० श्रु २/अ ७ उस काल उस समय में ऋद्धि से समृद्ध राजगृह नाम का नगर था। उसके बाहर उत्तर-पूर्व में कई समृद्ध भवनों से सुशोभित नालन्दा नामक बाहिरिक (उपनगर) था।
उस नालन्दा बाहिरिक में लेप नामक एक गाथापति रहता था। नालन्दा उपनगर की उत्तर-पूर्व दिशा में, उस लेप गाथापति के 'शेष द्रव्या' नामक उदकशाला थो। उस उदकशाला के उत्तर-पूर्व में हस्तियाय नामक रमणीय उपवन था । उस उपवन की किसी गृह प्रदेश में भगवान गौतम ठहरे हुए थे, वे उस आराम के निचले भाग में विराजमान थे। उदयपेढालपुत्र का भगवान् गौतम के निकट आगमन अहे ण उदए पेढालपुत्ते भगवं पासावचिज्जे णियंठे मेदज्जे गोत्तेणं जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भगवं गोयमं एवं वयासीआउसंतो! गोयमा ! अस्थि खलु मे कइ पदेसे पुच्छियव्वे, तं च मे आउसो ! अहासुयं अहादरिसियमेव वियागरेहि ।। सवायं भगवंगोयमे उदयं पेढालपुत्तं एवं बयासी अवियाइ आउसो! सोचा णिसम्म जाणिस्सामो॥६।।
-सूय० श्रु २/अ७ उस समय भगवान् पार्श्वनाथ के सन्तानीय मेतार्य गोत्रीय उदय पेढालपुत्र नामक निर्ग्रन्थ जहां भगवान् गौतम विराजमान थे, वहां आया। आकर उनसे कहने लगा-आयुष्मान् गौतम ! आपसे मुझे कुछ पूछना है। आयुष्मान् ! आपने जैसा सुना हो, जैसा विश्वास किया हा वहो कहना। भगवान् गौतम उदय पेढालपुत्र से बोले-आयुष्मान् । यदि आपके प्रश्न को सुनकर-समझकर जान लूंगा तो उत्तर दूंगा। .३ उदय पेढालपुत्रका प्रश्न
सवायं उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयम एवं वयासी-आउसंतो! गोयमा ! अस्थि खलु कम्मारपुत्तिया णामसमणा णिग्गंथा तुम्हागं पश्यणं पवयमाणा गाहावई समणोवासगं उवसंपण्णं एवं पचक बावेंति-णण्णत्थ अभिजोगेणं, गाहावइचोरग्गहण - विमोक्षणयाए तसेहिं पाणेहिं णिहाय दंडं। एवं हं पच्चक्खंताणं दुप्पच्चक्खायं भवइ। एवं हं पच्चरखावेमाणाणं दुप्पचक्वावियं भवइ । एवं ते परं पच्चक्खावेमाणा अइयरंति सयं पइण्णं कस्स णं तं हे।
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