________________
वर्धमान जीवन-कोश
२६१ थेरस्स णं अज्जसुहन्मस्स अग्गिवेसायणगोत्तस्स अज्जजंबुनामथेरे अंतेवासी कासवगुत्तेण ।
-कप्प० स्थविरावली अग्निवैश्यायन गोत्रोत्पन्न, स्थविर आर्य सुधर्मा के काश्यप गोत्रोत्पन्न आर्य जंबू नामक स्थविर अंतेवासी थे। आर्य सुधर्मा के पट्टधर आर्य जंबू थे।
आर्य जंबू के जीवन का कालक्रम सामान्यतः निम्नांकित रूप में माना जाता है :१-जन्म : ई० पू० ५४३ २--दीक्षा : ई० पू० ५२७-१६ वर्ष की आयु में भगवान महावीर के निर्वाण के कुछ बाद ।
यद्यपि भगवान् महावीर का परिनिर्वाण ई० पू० ५२७ में हुआ था। परन्तु जंबू स्वामी की दीक्षा के समय भगवान् महावीर का परिनिर्वाण हो चुका था।
३-केवलझान : ई० पू० ५०७ ४-निर्वाण : ई० पू० ४६३ - सम्पूर्ण आयु ८० वर्ष । बुद्ध का परिनिर्वाण ई. पू. ५४४ में हुआ।
नोट-कतिपय विद्वान् दिगम्बर-परम्परा के अनुसार वीर-निर्वाण के १२ वर्ष पश्चात् गौतम, उसके १२ वर्ष बाद
सुधर्मा तथा उसके ४० वर्ष पश्चात् जंबू का मोक्ष मान्य किये हैं। इस प्रकार १२+१२+ ४० = वीर निर्वाण से जंबू-निर्वाण ६४ वर्ष होते हैं।
श्वेताम्बर-परम्परा के अनुमार भी गौतम, सुधर्मा और जंबू के कैवल्य-काल की कुल संख्या ६४ वर्ष होती है। पर वह इस प्रकार है-गौतम का कैवल्य काल १२ वर्ष, सुधर्मा का कैवल्य काल ८ वर्ष तथा जंबू का कैवल्य काल ४४ वर्ष = कुल ६४ वर्ष । .१६ भगवान के परिनिर्वाण के पश्चात् सुधर्मा स्वामी चंपा नगरी में :
__ तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मे थेरे जाव पंचहिं अणगार सएहिं सद्धिं संपरिवुडे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव चंपा गयरी जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव समोसरिए। परिसा णिग्गया जाव पडिगया।
-अंत० व १/अ १ उस काल उस समय में स्थविर सुधर्मा स्वामी पांच सौ अनगारों के साथ तीर्थङ्कर भगवान की परम्परा के अनुसार विचरते हुए एवं ग्रामानुग्राम अर्थात् एक ग्राम से दूसरे ग्राम अनुक्रम से विहार करते हुए चम्पानगरो के पूर्णभद्र नामक उद्यान में पधारे ।
आर्य सुधर्मा स्वामी के आगमन को सुनकर परिषद् अर्थात् नगर निवासी लोगों का समुदाय रूप सभा, उन्हें वंदन करने के लिए एवं धर्मकथा सुनने के लिए अपने-अपने घर से निकल कर वहाँ पहुँची और वंदन करके एवं धर्मकथा सुनकर वापस लौट गयी।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org