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वर्धमान जीवन - कोश
(ख) ( एक्कारस वि गणहरा ) रायगिहे नयरे मासिएणं भत्तिएण अपाणएणं कालगया जाम सव्वदुक्खप्पहीण्णा |
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—कप्प० सू २०३
सुधर्मा गणधर - राजगृह नगर में एक मास तक बिना जल के अनशन करके कालधर्म को प्राप्त हुए या सर्वदुःखों का अंत किया ।
• १३ सुधर्मा गणधर की निर्वाणभूमि
परिनिव्वुया गणहरा जीवंते नायए नव जणाउ । इदभूई सुहम्मो अ रायगिहे निव्वुए वीरे ॥
- आव० निगा ६५
सुधर्मा का निर्वाण मगध की राजधानी राजगृह में हुआ ।
नोट- सुधर्मा गणधर ५० वर्ष गृहस्थ जीवन + ३० वर्ष साधु-जीवन + १२ वर्ष असर्वज्ञ रूप में संघप्रधान तथा ८ सर्वज्ञ रूप में संघप्रधान कुल १०० वर्ष का वयोमान होता है । दिगम्बर-परम्परा इससे कुछ भिन्न हैं वहाँ इनका केवलि-काल बारह वर्ष माना जाता है ।
जंबूसामि चरिउ के रचयिता वीर कवि ( ११वीं शती) ने सुधर्मा के १८ वर्ष तक केवल के रूप में रहने उल्लेख किया है।
. १४ सुधर्म गणधर की श्रुत-साधना
सव्वे एए समणस्स भगवओ महावीरस्स एक्कारस वि गणहरा दुवालसंगिणो चोद्दस पुव्विणे समत्तगणिपिउगधरा । -- कप्प० सू २३
सुधर्मा गणधर द्वादशांग - वेत्ता, चतुर्दशपूर्वी तथा समस्त गणिपिटक के धारक थे ।
• १५ आर्य सुधर्मा की अपत्य परम्परा या वंशपरंपरा
जे इमे अज्जत्ताते समणा निग्गंथा विहरंति एएणं सव्वे अज्जसुहम्मस्स अणगारस्स आवशि अवसेसा गणहरा निरवच्चा वोच्छिन्ना । - कप्प० सू २
श्रमण भगवान् महावीर की उत्तरवर्ती श्रमण परम्परा के अधिनायक आर्य सुधर्मा हुए; इसलिए आगे की सा परम्परा आर्य सुधर्मा की ( धर्म ) अपत्य परम्परा या ( धर्म ) वंश परंपरा कही जाती है ।
अस्तु जो आज श्रमण-निर्ग्रन्थ विद्यमान है, वे सभी अनगार आयं सुधर्मा की अपत्य परम्परा के हैं, क्योिं और सभी गणधर निरपत्य रूप में निर्वाण को प्राप्त हुए ।
• १६ सुधर्मा के पट्टधर- जंबूस्वामी
जंबूस्वामी - एक विवेचन-
. १ तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मस्स अणगाररस जेट्ठ अंतेवासी अज्जजंबूणामं अणगादे कासवगोत्तेणं सत्तुस्सेहे जाव अज्जसुहम्मस्स थेरस्स अदूरसामंते उड्ढजाणू अहोसिरे झाणकोट्ठोवग संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति ॥ ६ ॥
-नाया० श्रु १ अ
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