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वर्धमान जीवन-कोश (ख) तद्दिवसे चेव सुहम्माइरियो जंबूसामियादीणमणेयाणमाइरियाणं वक्वाणिददुवालसंगो घाइच उक्कक्खएण केवलि जादो। तदो सुहम्मभडारयो वि बारसवस्साणि १२ केवलविहारेण विहरिय णिव्वुई पत्तो।
-कसापा०/गा १ टीका/भाग १/पृ०८४ उसी दिन सुधर्माचार्य, जंबूस्वामी आदि अनेक आचार्यो को द्वादशांग का व्याख्यान करके चार घातिया कर्मो का क्षय करके केवली हुए।
तदनन्तर सुधर्म भट्टारक भी बारह वर्ष तक केवलिविहार रूप से विहार करके मोक्ष को प्राप्त हुए।
.११ गौतम का परिनिर्वाण : तत्र द्वादशवत्सरी क्षितितले भव्यान् प्रबोध्योच्चकैः । स्वामीवामलकेवलर्द्धिरमरैरभ्यर्चितो गौतमः ॥२८॥ गत्वा राजगृहे पुरे क्षत भवोपग्राहिकर्मा प्रभु- भूत्वा मासमुपोषितः पदमगादक्षीणशर्मास्पदम् ।।२८२॥
-त्रिशलाका० पर्व १०/सर्ग १३ केवलज्ञान समुत्पत्ति के बाद-बारह वर्ष पृथ्वी पर विहार कर और भव्य प्राणियों को प्रतिबोधित करते हुए केवलज्ञान रूप अचल समृद्धि से प्रभु की तरह देवों द्वारा पूजित गौतम मुनि अंत में राजगृह नगरी आये ।
वहाँ एक मास का अनशन कर, भवोपग्रही कर्म खपाकर अक्षय सुखवाले मोक्ष पद को प्राप्त किया।
.१२ इन्द्रभूति का एक विवेचन : (क) थेरे णं इंदभूती बाणउई वासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे, वुद्ध
-सम० सम १२ टीका- स्थविरइन्द्रभूतिर्महावीरस्य प्रथमगणनायकः, स च गृहस्थपर्याये पंचाशतं वर्षाणि त्रिंशतं
छद्मस्थपर्यायं द्वादश च केवलित्वं पालयित्वा सिद्ध इति सर्वाणि द्विनवतिरिति ।
स्थविर इन्द्रभूति भगवान महावीर के प्रथम गणधर थे। जिनका गृहस्थ पर्याय पचास वर्ष, छद्मस्थ साधु पर्याय तीस वर्ष तथा केवलि-पर्याय बारह वर्ष का था। सर्वायु १२ वर्ष को थी। (ख) बासट्ठी वासाणिं गोदमपहुदीण णाणवंताण । धम्मपयट्टणकाले परिमाणं पिंडरूवेणं ॥
-तिलोप० अधि ४/गा १४७८ गौतम आदि केवलियों के धर्म-प्रवर्तन-काल का प्रमाण पिंडरूप से ६२ वर्ष है।
.१३ इन्द्रभूति-सर्वलब्धि संपन्न थे : मलय टीका-सर्वेऽपि सर्वलब्धिसम्पन्नाः- आमोषध्याद्यशेषलब्धिसम्पन्नाः।
-आव० निगा ६५६ इन्द्रभूति आमाँ षिधि आदि सर्वलब्धि से संपन्न थे।
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