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दो शब्द
स्वर्गीय श्री मोहनलालजी बांठिया तथा उनके साथियों ने जैनागम एवं वाङ् मय के तलस्पर्शी गंभीर अध्ययन कर आधुनिक दशमलव प्रणाली के आधार पर अलग-अलग अनेक विषयों पर कोश प्रकाशित करने की परिकल्पना की और इसको मूर्तरूप देने के लिए जैन दर्शन समिति की स्थापना महावीर जयंती के दिन सन् १९६९ के दिन की गई ।
यह संस्था स्वर्गीय मोहनलालजी बांठिया एवं श्रीचंद चोरड़िया द्वारा निर्मित विषयों पर कोश प्रकाशन का कार्य कर रही है। इसके द्वारा निम्नलिखित कोश प्रकाशित हैं जिनका सक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैं।
१. लेश्याकोश – प्रथम पुष्प - लेश्या अध्यवसाय का बेरोमेटर है । इस कोश में छओं लेश्याओं का विस्तृत विवेचन है। इन लेश्याओं का आगम ग्रंथों में अनेक स्थल पर उल्लेख है उसका संकलन हुआ है। CYCLOPAEDIA OF LESHYA के रूप में इस ग्रंथ का प्रकाशन हुआ है। जिससे कि लेश्या विषय पर अनुसंधान करने वालों को व दर्शन शास्त्र में रूचि रखने वालों को एक ही स्थान में पर्याप्त सामग्री उपलब्ध हो
सकेगी।
अमेरिका के एक छात्र ने इस विषय को लेकर PH D. डिप्लोमा प्राप्त किया। विषय पर अध्ययन करने में 'लेश्याकोश' से भरपूर सामग्री प्राप्त हुई।
२. क्रियाकोश - द्वितीय पुष्प - इसी प्रकार क्रिया कोश में आरंभिकी आदि पच्चीस क्रियाओं का विस्तृत विवेचन है । क्रिया का एकरूप पुण्य-पाप का बंधन है और उसका दूसरा रूप कर्म-बंधन से छुटकारा पाना है । किया कोश में आगम व ग्रंथों के आधार पर विस्तृत विवेचन है ।
२. मिध्यात्वीका आध्यात्मिक विकास तृतीय पुष्प मिध्यास्वी प्राणी का सह आचरण श्रेष्ठ नहीं माना जाय तो उसका आध्यात्मिक विकास कैसे हो सकता है। श्रीचंद चोरड़िया ने लगभग दो सौ ग्रंथों का गम्भीर परायण एवं आलोडन करके शास्त्रीय रूप में अपने विषय को प्रस्तुत किया है । अतः पंडित दलसुख भाई मालवणिया के शब्दों में यह ग्रंथ लेश्याकोश तथा क्रियाकोश की कोटिका हो है ।
उनके कथनानुसार इस
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४. वर्धमान जीवन कोश- प्रथमखण्ड - चतुर्थ पुष्प प्रस्तुत ग्रंथ जैन दर्शन समिति को कोश परम्परा की
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कड़ी में एक महत्वपूर्ण संदर्भ ग्रंथ है। वर्धमान जीवन कोश का यह प्रथम भाग स्वर्गीय मोहनलालजी बांठिया द्वारा संकलित एवं तैयार सामग्री का व्यवस्थित संपादित रूप है । बाँठियाजी इस काम को अधूरा छोड़कर स्वर्गवासी हो गये, किन्तु श्रीचन्द चोरड़िया ने अत्यन्त परिश्रम कर इसे तैयार किया है । इसमें भगवान् महावीर के पवन, गर्भ, जन्म, दीक्षा, केवल ज्ञान तथा परिनिर्वाण आदि का विस्तृत विवेचन है।
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