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सामान्यतः अनुवाद हमने शाब्दिक अर्थ रूप ही किया है लेकिन जहाँ विषय को गम्भीरता या जटिलता देखी है वहाँ अर्थ को स्पष्ट करने के लिए विवेचनात्मक अर्थ भी किया है। कहीं-कहीं भावार्थ भी किया है। विवेचनात्मक अर्थ करने के लिए हमने सभी प्रकार की टीकाओं तथा अन्य सिद्धांत ग्रंथों का उपयोग किया है। छद्मस्था के कारण यदि अनुवादों में या विवेचन करने में कहीं कोई भूलभांति व त्रुटि रह गई हो तो पाठक वर्ग सुधार लें। जहां मूल पाठ में विषय स्पष्ट रहा है वहाँ मूल पाठ के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए हमने टीकाकारों के स्पष्टीकरण को भी अपनाया है तथा स्थान-स्थान पर टीका का पाठ भी उद्धृत कर दिया है।
अस्तु वर्धमान जीवन कोश -श्वेताम्बर आगम तथा दिगम्बर तथा श्वेताम्बर सिद्धांत ग्रंथों से तैयार किया गया है। सम्पादन, वर्गीकरण तथा अनुवाद के काम में निर्यक्ति, चूर्णी, वृत्ति, भाष्य आदि का भी उपयोग किया गया है।
संभव है हमारी छद्मस्था के कारण तथा मुद्रक के कर्मचारियों के प्रमादवश पुस्तक की छपाई में कुछ अशुद्धियाँ रह गई हो। आशा है पाठकगण अशुद्धियों के लिए हमें क्षमा करेंगे तथा आवश्यकता के अनुसार संशोधन कर लेंगे।
हमारी कोश परिकल्पना का अभी भी परोक्षण काल चल रहा है अतः इसमें अनेक त्रुटियों हों तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। लेकिन इस हमारी परिकल्पना में पुष्टता आ रही है। तथा हमारे अनुभव से यथेष्ट समृद्धि हुई है इसमें कोई सन्देह नहीं है । पाठक वर्ग से सभी प्रकार के सुझाव अभिनन्दनीय है। चाहे वे सम्पादन, अनुवाद या अन्य किसी प्रकार के हों। आशा है इस विषय में विद्वद् वर्ग अपने सुझाव भेजकर हमें पूरा सहयोग देंगे।
अस्तु वर्धमान जीवन-कोश-तृतीय खण्ड की तैयारी अधिकांश सम्पूर्ण हो चुकी है। इसमें वर्धमान तीर्थंकर के साधु-साध्वी-श्राविक-श्राविका का तो विवेचन रहेगा ही और भी प्रचुर सामग्री मिलेगी।
हम जैन दर्शन समिति के आभारी है जिसने वर्धमान जोवन-कोश के प्रकाशन की सारी व्यवस्था की जिम्मेवारो ग्रहण की। युग प्रधान आचार्य श्री तुलसी के प्रति भी हम श्रद्धावनत है जिन्होंने अतिव्यवस्तता के कारण भी प्रस्तुत कोश पर आशीर्वचन लिखा। हम बन्धुवर जबरमल जी भंडारी के अत्यन्त आभारी हैं जिन्होंने सदा इस कार्य के लिए प्रोत्साहित किया है। लखनऊ के डा. ज्योति प्रसाद जैन को हम कभी नहीं भूल सकते-जिन्होंने समयसमय पर अपने बहुमूल्य सुझाव देते रहे तथा प्रस्तुत कोश पर "Foreword" लिखा। L D. Institute of Indology अहमदाबाद के भूनपूर्व डाइरेक्टर श्री दल सूख भाई मालवणिया के प्रति हम आभारी हैं जिन्होंने समय-समय पर अपने बहुमूल्य सुझाव जताते रहे। हम उन देशी-विदेशी विद्वानों को धन्यवाद देते हैं जिन्होंने लेश्या कोश, क्रिया कोश, मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास तथा वर्धमान जीवन-कोश प्रथम खण्ड पर अपनी अपनी सम्मतियां भेजकर हमारा उत्साहवर्धन किया है !
युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी तथा युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ की महान दृष्टि हमारे पर सदैव रही है-जिसे हम भूल नहीं सकते।
हम जैन दर्शन समिति के सभापति श्री नवरतनमल सुराना, स्व० ताजमलजी बोथरा, नेमीचन्दजी गधइया, मोहनलालजो बैद ( मन्त्री ), मांगीलालजी लूणिया, जयसिंहजी सिंघी, सुमेरमलजी सुराना, धर्मचन्दजी राखेचा, भंवरलालजी सिंघी तथा स्व• सूरजमल जी सुराना आदि आदि सभी बन्धुओं को धन्यवाद देते हैं जिन्होंने हमारे विषय कोश निर्माण कल्पना में हमें किसी न किसी रूप में सहयोग दिया है। कलकत्ता,
-श्रीचन्द चोरड़िया ११, नवम्बर, १९८४
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