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सुधर्मा साढ़े बीस वर्ष जीवित रहे । ये दोनों पचास वर्ष गृहवास में रहे। भगवान् का निर्वाण हुआ तब ये दोनों ८० वर्ष के थे । गौतम का निर्वाण ६२ वर्ष की तथा सुधर्मा का निर्वाण १०० वर्ष की अवस्था में हुआ ।
कुमार श्रमण केशी भगवान् पार्श्वनाथ के और श्रमण गौतम भगवान् महावीर के शिष्य थे। भगवान् महावीर अस्तित्व में आये ही थे । उनका धर्मचक अभी प्रवृत्त हुआ ही था। संक्षिप्त उत्तर से केशी की जिज्ञासा शांत हुई। तब गौतम ने भगवान् महावीर के जीवनवृत्त के अनेक चित्र केशी के सामने प्रस्तुत किये।
निर्व्रन्थ संघ में महावीर के प्रथम समवसरण में हो स्त्री दोक्षायें हुई। चन्दनबाला प्रथम शिष्या थी और वह छत्तीस हजार के वृहत् श्रमणी संघ में भी सदैव प्रवर्तिनी अग्रणी रही। केवलज्ञान प्राप्त कर जब महावीर मध्यम पावा पधारे तब चन्दनवाला उनके समवयण में दीक्षित हुई।
भगवान् बहत्तरवें वर्ष में चल रहे थे। उस अवस्था में भी वे पूर्ण स्वस्थ थे। वे राजगृह से विहार कर अपापापुरी में आये वहां की जनता और राजा हस्तिपाल ने भगवान् के पाय धर्म का सश्व सुना भगवान् के निर्वाण का समय बहुत नजदीक आ रहा था । भगवान् ने गौतम को आमन्त्रित कर कहा- गौतम! पास के गांव में सोमशर्मा (देवशर्मा) नाम का ब्राह्मण है। उसे धर्म का तत्र समझाना है। तुम वहां जाओ और उसे सम्बोधि दो । गौतम भगवान् का आदेश शिरोधार्य कर वहां चले गए।
भगवान् प्रवचन करते-करते ही निर्वाण को प्राप्त हो गये। उस समय रात्रि चार घड़ी शेष थी (चतुर्घटिकाथशेषायां शत्रो कल्पसूत्र-सूत्र १४७ सुबोधिका टीका ) महल और लिच्छवि गणराज्यों ने दीप जलाये कार्तिकी अमावस्या की रात जगमगा उठो ।
सोमशर्मा ब्राह्मण प्रतिबुद्ध हो गया। गौतम अपने कार्य में सफल होकर भगवान् के पास आ रहे थे इतने में उन्हें सम्वाद मिला कि भगवान् महावीर का निर्वाण हो गया। कुछ क्षणों के लिए गौतम माम भूल गये। उनकी अन्तरात्मा जागृत हुई। वे सम्भले गौतम ध्यान के उच्च शिखर पर पहुँचे। उनका राग क्षीण हुआ। वे केवली हो गये ।
मंत्री गौशाल की मृत्यु उनके जीवन काल में तथा गौतम बुद्ध के पहले ही महावीर का निर्माण अपापा ( पावा ) में हो चुका था। बौद्ध ग्रन्थों में उल्लेखित विभिन्न संवादों से स्पष्ट है कि महावीर को गौतम बुद्ध से आयु में ज्येष्ठ माना जाता था । जेन परम्परा में गौशाल की मृत्यु महावीर के निर्वाण के साढ़े सोलह वर्ष पहले श्रावस्ती में होने तथा कूप. अगत के शासन काल के सोलवें वर्ष में भगवान् के निर्माण के उल्लेख उपलब्ध हैं।
महावीर के निर्माण और अवन्तीदाज प्रद्योत के उत्तराधिकारी पालक का राज्यारोहण एक ही दिन हुआ था । महावीर ने निर्वाण के समय चुन्द समास का वर्षावास भी पावा में ही था।
महावीर गौतम बुद्ध की अपेक्षा चिर-दीक्षित और ओष्ठ थे तथा महावीर का निर्माण गौतम बुद्ध के जीवन काल में हो चुका था । महावीर को केवलज्ञान गौतम बुद्ध को सम्बोधि प्राप्त होने के पूर्व ही प्राप्त हो चुका था । चन्द्रगुप्त मौर्य और महावीर निर्वाण के बोच २१५ वर्ष का अन्तर ( ३१२ + २१५ ) माना गया गया है तथा महावीर निर्माण के ४०० वर्ष बाद उज्जयिनी में विक्रमादित्य राजा के होने का उल्लेख है ।
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