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वर्धमान जीवन-कोश
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.२४ गणधरों की जन्मभूमि मगहा गुब्बरगामे जाया तिन्नेव गोयमसगुत्ता। कुल्लागसन्निवेसे जाउ वियत्तो सुहम्मो अ॥६४३॥ मोरीअसंनिवेसे दोभायर मंडि-मोरिआ जाया । अयलो अकोसलाए मिहिलाए अकंपिओ जाओ॥६४४॥ तुंगीअसंनिवेसे मेअज्जो वच्छभूमिए जाओ। भगवंपि य पभासो रायगिहे गणहरो जाओ ॥६४५॥
__-आव० निगा ६४३ से ६४५=भाग-२ मलय टीका-मगधेषु जनपदेषु गोब्बरनामे जातास्त्रय एवाद्या गणधराः, कथम्भूता एते त्रयोऽपीत्याह
'गौतमसगोत्राः' सह गोत्रं येषां ते सगोत्राः गौतमेन गोत्रेण सगोत्रा गौतमसगोत्राः, गौतमाभिधगोत्रयुक्ता इत्यर्थः, तथाकोल्लाकसन्निदेशे जातोऽव्यक्तः सुधर्मश्च, मौर्यसनिवेशे द्वौ भ्रातरौ मण्डिकमौ? जातो, अचलश्च कोशलायां मिथिलायामकम्पिको जात इति, तुङ्गिके सन्निवेशे, वत्सभूमौ कौशाम्बीविषये इत्यर्थः, मेतार्यों जातः, भगवानपि च
प्रभासो राजगृहे गणधरो जातः । इन्द्रभूति, अग्निभूति तथा वायुभूति-ये तीनों गणधर सहोदर भाई थे तथा जन्मभूमि-गोब्बर ग्राम थी। व्यक्त और सुधर्म-ये दो गणधर को जन्मभूमि -कालाकसन्नि वेश थी। मंडित और मौर्यपुत्र-ये दो गणधर की जन्मभूमि मोर्य सन्निवेश थो। अवनभाता को जन्मभूमि कौशल, अकम्पित गणधर को जन्मभूमि-मिथिला थी। मेतार्य तथा प्रभास गणधर की जन्मभूमि क्रमशः तुंगिकासन्निवेश, राजगृह थी।
.२५ गणधर और काल-नक्षत्रचंद्र-योग
(जन्म के समय-गणधरों का-नक्षत्रचंद्र-योग) जेट्ठा कत्तिय साई सवणो हत्थुत्तरा महाओअ । रोहिणि उत्तरसाढा मिगसिर तह अरिसणी पुस्सो॥६४६॥
-आव० निगा ६४६ मलय टीका- इन्द्रभूतेर्जन्मनक्षत्रं ज्येष्ठा अग्निभूतेः कृत्तिकाः वायुभूते स्वातिय॑क्तस्य श्रवणः सुधर्मास्य
हस्त उत्तरो यासां ता हस्तोत्तरा उत्तराफाल्गुन्य इत्यर्थः, मण्डिकस्यमघाः, मौर्यस्यरोहिणी,
अकम्पिकस्य उत्तराषाढ़ाः, अचलभ्रातुः मृगशिरः मेतायस्य अश्विनी, प्रभासस्य पुष्यः । इन्द्रभूति आदि गणधरों के जन्म के समय इस प्रकार नक्षत्र चंद का योग रहा है । १-इन्द्रभूति के जन्म के समय ज्येष्ट नक्षत्र चंद्र का योग । २-अग्निभूति , कृत्तिका , ३-वायुभूति , स्वाति , ४-व्यक्त
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श्रवण
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