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वर्धमान जीवन-कोश .५ अग्निभूति के संशय : xxx द्वितीयस्य कर्मणि, यथा ज्ञानावरणीयादिलक्षणं कर्म किमस्ति किंवा नास्तीति
-आव० निगा ५६६/मलय टीका द्वितीय गणधर-अग्निभूति के यह संशय था कि कर्म हे या नहीं। .६ वायुभूति के संशय :
तृतीयस्य 'तज्जीवे'ति किं तदेवं शरीरं स एव जीवः किं वाऽन्य इति, न पुनर्जीवसत्तायां तस्य संशयः।
आव० निगा ४६/टीका तृतीय अग्निभूति के यह संशय था कि शरीर ही जीव है या अन्य । .७ व्यक्त गणधर के संशय चतुर्थस्य भूतेषु संशयः, किं पृथिव्यादीनि भूतानिसन्ति किंवा नेति ?
-आव० निगा ५६६/टीका चतुर्थ गणधर-व्यक्त गणधर के भूत में संशय था; पृथ्वी आदि भूत होते हैं या नहीं। .८ सुधर्म गणधर के संशय
पञ्चमस्य 'तारिसय' त्ति किं यो यादृश इहभवे सोऽन्यस्मिन्नपि भवेताद्दश एव उतान्यथापीति संशयः।
-आव० निगा ५४६/टोका पंचम गणधर-सुधर्मा गणधर के यह संशय था कि जो इस भव में जैसा है वह अन्य भव में वैसा ही होगा या अन्यथा होगा। .६ षष्ठम गणधर-मंडित के संशय
षष्ठस्य बन्धश्च मोक्षश्च बंधमोक्षं तस्मिन् संशयो यथा बन्धमोक्षौ स्त किंवा नेति आहकर्मसंशयादस्य कोविशेषः ? –उच्यते, सकर्मसत्तागोचरः, अयंतु तदस्तित्वे सत्यपि जीवकर्मसंयोग विभागगोचरइति ।
-आव० निगा ५४६/टीका षष्ठम गणधर-मंडित गणधर के यह संशय था कि बन्ध और मोक्ष है या नहीं। .१० सप्तम गणधर-मौर्यपुत्र के संशय सप्तमस्य किं देवाः सन्ति किंवान सन्तीतिसंशयः
-आव० निगा ५६६/टोका सप्तम गणधर-मौर्यपुत्र के संशय था कि देव है या नहीं। .११ अष्टम गणधर अकम्पित के संशय :
अष्टमस्य नारकाः संशयगोचरः, किं ते सन्ति किंवा न सन्तीति। -आव०निगा ५६६/टीका अष्टम गणधर का यह संशय था कि नारकी है या नहीं।
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