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वर्धमान जीवन-कोश तएणं समणे भगवं महावीरे सुबाहुस्स कुमारस्स इमं एयारुवं अज्झतियं x x x हत्थिसीसे णगरे जेणेव पुप्फकरंडयउजाणे जेणेव कयवणमालषियस्स जक वस्स जक्वायतणे तेणेव उवागच्छइ, xxx । परिसा राया निग्गए। ४.४ ४ । धम्मो कहिओ। परिसा राया पडिगया ।
-विवा० श्रु २/अ १/सू ३२, ३३ तदनन्तर भगवान् महावीर क्रमशः ग्रामानुग्राम विहार करते हुए हस्तिशीर्ष नगर के पुष्पकरण्डक उद्यानान्तर्गत कृतवन मालप्रिय नामक यक्ष के यक्षायतन में पधारे । भगवान् ने परिषद् को धर्म का उपदेश दिया।
.१३ श्रमण भगवान् महावीर के विविध विशेषण
मम धम्मायरिए, धम्मोवदेसए, समणे भगवं महावीरे उप्पण्णनाण-दसणधरे अरहा जिणे केवली तीय-पच्चुप्पन्न-मणागयचियाणए, सव्वण्णू, सव्वदरिसी xx x |
-भग० श २।उ १/सू ३८ धर्माचार्य, धर्मोपदेशक, श्रमण भगवान महावीर उत्पन्न ज्ञान-दर्शन के धारक हैं, अरिहंत हैं, जिन हैं, केवली हैं । भूत, भविष्यत् और वर्तमान के ज्ञाता हैं, सर्वज्ञ-सर्वदर्शी है । १४ भगवान महावीर और दुर्गम स्थान
. पंचहिं ठाणेहिं पुरिम-पच्छिमगाणं जिणाणं दुग्गमं भवति. तंजहा-दुआइक्खं, दुविभज्जं दुपस्सं, दुतितिक्खं, दुरणुचरं ।
-ठाण० स्था ५/उ १/सू ३२/पृ० १८४ प्रथम तथा अंतिम तीर्थंकर के शासन में पाँच स्थान दुर्गम होते हैं१-धर्म तत्व का आख्यान करना । २-तत्व का अपेक्षा दृष्टि से विभाग करना। ३–तत्व का युक्ति पूर्वक निदर्शन करना । ४-उत्पन्न परीषहों को सहन करना। ५-धर्म का आचरण करना । नोट-वर्धमान तीर्थंकर-अन्तिम तीर्थंकर-जिन थे।
•१५ भगवान महावीर और उनका प्रवचन •१ भगवात महावीर से उपदिष्ट और अनुमत पांच वस्तुए।
पंच ठाणाई समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं निग्गंथाणं णिचं वण्णिताई णित्वं कित्तिताई णित्त्वं बुइयाई णिचं पसत्थाई णिञ्चमब्भणुण्णाताई भवंति तंजहा-खंती, मुत्ती, अजवे, मद्दवे, लाघवे।
-ठाण० स्था ५/उ १सू ३४/पृ० ६५ श्रमण भगवान महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए पाँच स्थान सदा वजित किये हैं, कीर्तित किये हैं, व्यक्त किये हैं, प्रशंसित किये हैं । अभ्यनुज्ञात ( अनुगत ) किये हैं
(१) क्षांति, (२) मुक्ति, (३) आर्जव, (४) मार्दव और (५) लाघव ।
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