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वर्धमान जीवन-कोश शुश्रूपमाणास्तत्रास्थुर्यथास्थानं सुरादयः। एत्य नत्वा सहस्राक्ष इति स्वामिनमस्तवीत् ॥४॥
-त्रिशलाका० पर्व १०/सर्ग १५ अपापानगरी में देवों ने तीन वनों से विभूषित रमणीक समवसरण भगवान् की देशना देने के लिए रचित किया।
सुर-असुर सेवित प्रभु स्वयं के आयुष्य का अंत जानकर अन्तिम देशना देने के लिए बैठे।
भगवान् पधारे हैं-ऐसा जानकर अपापापुरी का राजा हस्तिपाल वहाँ आया और भगवान् को नमस्कार किया और भगवान् की देशना सुनने के लिए बैठा।
देव भी देशना सुनने के लिए वहां आये। उस समय इन्द्र आकर भगवान को नमस्कार किया। फिर भगवान ने ऐसी देशना दीसमणे भगवं महावीरे एगदिवसेणं एगनिसिजाए चउप्पण्णाईवागराई वागरित्था ।
-सम० सम ५५/सू३ श्रमण भगवान् महावीर ने एक ही दिवस में एक ही आसन पर बैठकर चौपन व्याकरण (प्रश्नोत्तर) कहे थे। ७ मगवान् महावीर की अन्तिम देशना
एवं स्तुत्वा हस्तिपाल विरतेऽईन्नपश्चिमः । अपश्चिमामित्यकरोद्भगवान् धर्मदेशनाम् ॥२४॥ पुमर्था इहयत्वारः कामार्थी तत्र जन्मिनाम् । अर्थभूतो नामधेयादनी परमार्थतः ॥ ५॥ अर्थस्तु मोक्ष एको धर्मस्तस्य च कारणम् । संयमादिर्दशविधः संसाराम्भोधितारणः ॥२६।। अनन्तदु खः संसारो मोक्षोऽनन्तसुग्वः पुनः । तयोस्त्यागपरिप्राप्तिहेतुर्धर्म विना न हि ॥७॥ मार्ग श्रितो यथा दूरं क्रमात् पंगुरपि ब्रजेत् । धर्मस्थो घनकर्माऽपि तथा मोक्षमवाप्नुयात् ॥२८॥ एवं च देशनां कृत्वा विरते त्रिजगद्गुरौ। मण्डलेशः पुण्यपालः प्रभुं नत्वा व्यजिज्ञपत् ॥६॥
-त्रिशलाका० पर्व १०/सर्ग १३ हस्तिपाल राजा ने भगवान् की स्तुति की। तत्पश्वात् चरमतीर्थकर भगवान महावीर ने इसप्रकार देशना दी
"इस जगत में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष-ये चार पुरुषार्थ हैं। उनमें काम और अर्थ-प्राणियों के लिए नाम से ही अर्थ रूप हैं, परमार्थ रूप में अनर्थ रूप है। चार पुरुषार्थ में, सम्यग् रूप से, अर्थ रूप एक मोक्ष रूप है और उसका कारण धर्म है। वह धर्म-संयमादि दश प्रकार का कहा है। और संसार-सागर से तारने वाला है। अनंत दःख रूप संसार है और अनंत सुख रूप मोक्ष है। इसका कारण संसार का त्याग और मोक्ष की प्राप्ति का हेतु धर्म के बिना अन्य कोई नहीं है।"
पंगु मनुष्य भी वाहन के आश्रय से दूर जा सकता है उसी प्रकार धनकर्मी होने पर भी धर्म के आश्रय से मोक्ष जा सकता है। ८ भगवान् को अन्तिम देशना की समाप्ति पर
राजा हस्तिपाल ने देखे गये आठ स्वप्नों का अर्थ पूछाअथ तत्र सुराश्चक र्वप्रत्रितयभूषितम् । रम्यं समवसरणं स्वामिनो देशनासदः ॥॥
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