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वर्धमान जीवन - कोश
१६१ सा त्रिः प्रदक्षिणीकृत्य नत्वा चोपास्थित प्रभुम् । प्रव्रज्यार्थं नृपाऽमात्यपुत्र्यो बहूयोऽपराअपि ॥ १६३॥ चन्दन धुरि कृत्वा ताः स्वयं प्राव्राजयत् प्रभुः । अस्थापयच्छ्रावकत्वे नृन्नारीश्च सहस्रशः ॥ १६४ ॥ जाते संवे चतुर्थेषं धोब्योत्पादव्ययात्मिकाम् । इन्द्रभूतिप्रभृतीनां त्रिपदी व्याहरत् प्रभुः || १६५ ॥ - त्रिशलाका० पर्व १० / सर्ग ५
( भगवान् के पास अपने प्रश्नों का समाधान किया ) इस प्रकार महान् कुल में उत्पन्न हुए महाप्राज्ञ, संवेग को प्राप्त और विश्व को वंदित - ऐसे इन्द्रभूति आदि ग्यारह प्रसिद्ध विद्वान श्री वीर प्रभु के मूल शिष्य हुए ।
इस समय शतानिक राजा के घर में स्थित चंदना ने आकाश मार्ग में आते-जाते हुए देवों को देखा। इससे प्रभु को केवलज्ञान की उत्पत्ति होने का निश्चय होने से उसको व्रत लेगे की इच्छा हुई ।
तत्पश्चात् पास में स्थित कोई देव उसे श्री वीर प्रभु की परिषद् में लाकर रखा । प्रभु को तीन प्रदक्षिणा कर नमस्कार कर चंदना दीक्षा लेने के लिए तत्पर हुई और खड़ी रही ।
उस समय दूसरे भी अनेक राजा तथा अमात्य की पुत्रियाँ दीक्षा लेने के लिए तैयार हुई ।
भगवान् ने चंदना को आगे कर उन सर्व को दीक्षा दी और हजारों नर-नारी श्रावकपन में स्थापित किये । इस प्रकार प्रथम (द्वितीय) देशना के बाद चतुविध संघ की स्थापना हुई ।
५ आर्य चंदना को प्रवर्तिनी पद पर स्थापित - भगवान् महावीर की धर्म देशना -
द्वितीय धर्म देशना -
साध्वीनां संयमोद्योगघटनार्थं तदैव च । प्रवर्तिनीपदे स्वामी स्थापयामास चन्दनाम् ॥ १८२ ॥ पूर्णप्रथम रुयां देशनां व्यसृजत् प्रभुः । राजोपनीतस्तत्र प्रागद्वारेण प्राविशदुबलिः || १८ || - त्रिशलाका० पर्व १० / सर्ग ५
भगवान् महावीर ने सत्री चंदना को संयमोद्योग के घटनार्थ प्रवर्तिनी पद पर स्थापित किया । इस प्रकार प्रथम पौरुषी पूर्ण हुई । भगवान् ने देशना समाप्त की
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भगवान् की अन्तिम देशना के समय इन्द्रभूति (गौतम) भगवान् के निकट नहीं थे ।
* १ भगवान् बहत्तरवें वर्ष में चल रहे थे । उस अवस्था में भी वे पूर्ण स्वस्थ थे । वे राजगृह से विहार कर आपापापुरी में आये । वहाँ की जनता और राजा हस्तिपाल ने भगवान् के पास धर्म का तत्त्व सुना । भगवान् के निर्वाण का समय बहुत समीप आ रहा था । भगवान् ने गौतम को आमंत्रित कर कहा- गौतम ! पास के गांव में सोमशर्मा नाम का ब्राह्मण है । उसे धर्म का तत्त्व समझाना है । तुम वहाँ जाओ और उसे संबोधि दो । गौतम भगवान् का आदेश शिरोधार्य कर वहाँ चले ।
भगवान् ने दो दिन का उपवास किया । वे दो दिन तक प्रवचन करते रहे । भगवान् ने अपने अन्तिम प्रवचन में पुण्य और पाप के फलों का विशद् विवेचन किया। भगवान् प्रवचन करते-करते ही निर्वाण को प्राप्त हो गये । उस समय रात्रि चार घड़ी शेष थी । "
१ – सौभाग्यपचयादि पर्व कथा संग्रह, पर्व १००
२ -- समवाओ, ५५/४
३—कल्पसूत्र, सूत्र १४७, सुबोधिका टीका, चतुर्थघटिकावशेषायां सत्रौ ।
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