________________
वर्धमान जीवन-कोश इस प्रकार ऊपर कथित बारह गणों से परिवृत्त भगवान् के सिंहासन के मध्य में स्थित हो अर्धमागधी भाषा के द्वारा छह द्रव्य, सात तत्त्व, संसार और मोक्ष के कारण तथा उनके फल का प्रमाण नय और निक्षेप आदि के द्वारा विस्तारपूर्वक निरूपण किया।
भगवान् का उपदेश सुनकर स्वाभाविक बुद्धिवाले कितने शास्त्रज्ञ सभासदों ने संयम धारण किया, कितनों ही ने संयमासंयम धारण किया और कितनों ने अपने मव्यत्व गुण की विशेषतायें शीघ्र ही सम्यग्दर्शन धारण किया।
इस प्रकार वर्धमान स्वामी धर्म देशना करते हुए अनुक्रम से राजगृह नगर आये और वहाँ विपुलाचल नामक पर्वत पर स्थित हो गये।
हे मगधेश ! जब तुमने भगवान् के आगमन का समाचार सुना-तब तुम शीघ्र ही यहाँ आये। .५ सेणिय हउँ आणिउ दिय पमुहु । महु संसयेण संभिण्णमइ ।
जिणु पुच्छिउ जीवहु तणिय गइ । गाहें महु संसउ णासियउ । मई अप्पउ दिक्खई भूसियउ। मइँ समउ समण-भावहु गय। पावइय दियहँ पंचसय घत्ता-पत्ते मासे सावणि बहुले पाडिवए दिणि । उप्पण्णउ चउ-बुद्धिउ महु सत्त वि रिसि-रिद्धिउ ।।
-वीरजि० संधि २/कड ६ इन्द्र प्रसन्न मुख होकर मुझ (इन्द्रभूति) द्विज प्रमुख को भगवान् के समवसरण में ले आया। उस समय मेरी मति संशय से भ्रांत थी, अतएव मैंने जिनेन्द्र से जीव की गति के विषय में प्रश्न किया। भगवान ने मेरे संशय को दूर कर दिया, तब मैंने अपने आपको मुनि-दीक्षा से विभूषित किया। मेरे साथ अन्य पाँचसो द्विज भी प्रव्रज्या लेकर श्रमण बन गये।
तत्पश्चात श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा के दिन आने पर मुझे चारों प्रकार की बुद्धि तथा सातों ऋषि-ऋद्धियाँ भी उत्पन्न हो गयीं।
१-वर्धमान-महावीर को ऋजुकूला नदी के तीर पर केवलज्ञानोत्पत्ति २-तत्पश्चात ही इन्द्र के आदेश से यक्ष द्वारा समवशरण की रचना ३-भगवान् की दिव्यध्वनि झेलने के लिए इन्द्र की खोज
४-इन्द्र अपना वेष बदलकर गौतम के यहां पहुँचता है णिडहेवि घाइ-कम्मेधंणाई भाणाणले जालोहिं घणा॥ घाइक्खइ दह-अइसय धरेहिं । x x x एत्थंतरे हरिणा भणिउ जाम किउ समवसरणु जक्खेणताम । पविउलु वारह-जोयण-पमाणु। x x
-वड ढमाणच. संधिह/कड २३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org