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वर्धमान जीवन-कोश अन्थों में ब्राह्मणग्रन्थों में - मातिथ्यं रूपमासर महावीरस्य नग्नहु । रूप मुपसदामेत्तिस्रो रात्रीः. सुरासुता ।
-यजु० / अ १६, मं १४ । अतिथि स्वरूप पूज्य मासोपवासी नग्न ( दिगम्बर ) महावीर की उपासना करो, जिसमें (संशय-विपर्ययखाय रूप ) तोन अज्ञान, अथवा ( धन-शोर-विद्या रूप ) मदत्रय की उत्पत्ति नहीं होती। बौद्धग्रन्थों में निगंठो आवुसो नातपुत्तो सब्वज़ सम्वदरस्सी । अपरिसेसे णाण दस्सण परिजानाति ।।
-मज्झिनि० भाग १ . आयुष्मान निर्ग्रन्थ ज्ञातृपुत्र ( भगवान महावीर ) सर्वज्ञ और सर्वदर्शी है। अपने अपरिमेष ( अनंत ) ज्ञानका वह सब कुछ जानते और देखते हैं । दिगम्बर परम्परा में पुरुरवा भील से लेकर महावीर होने तक भगवान् के गणनीय ३३ भवों का उल्लेख है श्वेताम्बर परम्परा में २७ ही भव मिलते हैं। उनमें प्रारम्भ के २२ भव कुछ नाम परिवर्तनादि के साथ t, जो कि दिगम्बरा-परम्परा में बतलाये गये हैं । मेष भवों में से कुछ को नहीं माना है। उनकी स्पष्ट गरी के लिए, यहाँ पर दोनों परम्पराओं के अनुसार भगवान महावीर के पूर्व भव दिये जाते हैंअगम्बर मान्यतानुसार
श्वेताम्बर मान्यतानुसार
० अनन्त संसार-भ्रमण पुरुरवा भिल्ल
१. ग्रामचिंतक - नयसार मिल्ल जोधर्म देव
२. सौधर्म कल्प का देव गीचि कुमार
३. मरीचि ह्यस्वर्ग का देव
४, ब्रह्मलोककल्प देव टिल ब्राह्मण
५. कौशिक
५क चतुगंति संसार-भ्रमण (अपर) धर्म स्वर्ग का देव
६. ईशान अथवा सौधर्म स्वर्ग का देव ध्यमित्र श्राह्मण
७. पुष्यमित्र ब्राह्मण
७क संसार भ्रमण (अपर) धर्म देव अथवा ईशान देव
८. सौधर्म कल्प देव
८.क संसार भ्रमण अग्निसह (अग्निशिख) ब्राह्मण
६. अग्नद्योत ब्राह्मण ६.क संसार भ्रमण (अपर)
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